' संवेदना , सौहाद्र , दया , करुणा , प्रेम तथा क्षमा भावों का अपनी आत्मा में विकास करना ही मानव जीवन का सम्मान करना है | वे सारे कर्म जिनसे आत्मा का विकास हो , परमात्मा का सामीप्य प्राप्त हो और संसार का हित साधन हो , जीवन का सदुपयोग है , जिसका फल पुण्य, पावनता , और अनन्त शान्ति के रूप में मनुष्य को मिलता है |
परमात्मा द्वारा प्रदत्त इस मानव जीवन का सदुपयोग ही उसका सम्मान करना है |
परमात्मा द्वारा प्रदत्त इस मानव जीवन का सदुपयोग ही उसका सम्मान करना है |
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