बात उन दिनों की है जब महात्मा विजयकृष्ण गोस्वामी वृन्दावन में बांकेबिहारी के मंदिर में रहते थे l वह समय था जब आधे पैसे का भी कुछ मिल जाता था l उन्होंने अपने शिष्य से कहा - --- " जाओ , आधे पैसे के पेडे ले आओ l भले ही आधा पेड़ा ले आओ , पर लेकर आना l " दुकानदार बड़े - बड़े सौदे कर रहा था , उसने शिष्य का अधेला उठाकर नाली में फेंक दिया l शिष्य ने धैर्य पूर्वक सिक्का उठाया , उसे धोया और फिर उसे देते हुए बड़ी विनम्रता से कहा --- " हमें नहीं खाना है , गुरु महाराज ने मंगाया है , दे दो भाई l " दुकानदार ने फिर फेंक दिया l
शिष्य ने फिर उठाया , धोया और कहा --- " प्रसाद के लिए मंगाया है , दे दो l " ऐसा दस बार हुआ l मालिक ने नौकर से कहा ---- " इसे पीटकर भगा दो l " शिष्य गोस्वामीजी के पास गया और बोला --- " नहीं दिया l बार - बार अधेला फेंकता ही रहा l "
गोस्वामीजी बोले ---- " तुमने गाली क्यों नही दी ? उसका स्वभाव गाली सुनकर काम करने का है l तुम्हे मालूम है कि तुम्हारे धैर्य के कारण देवत्व वहां इतना बढ़ा कि उसकी दुकान में आग लग गई l तुम भला - बुरा कह देते तो आग नहीं लगती l भगवान अपने शिष्यों का भला - बुरा कभी सहन नहीं करते l इसीलिए उसे दंड मिला l " इसी बीच दुकानदार दौड़ा - दौड़ा पेडे के पैकेट लिए आया l बोला ---- ' महाराज ! आपके चेले का हमसे अपमान हो गया l हमारी पूरी दुकान जल गई l "
यह है शुभ कर्मों की तीव्रता का परिणाम l
शिष्य ने फिर उठाया , धोया और कहा --- " प्रसाद के लिए मंगाया है , दे दो l " ऐसा दस बार हुआ l मालिक ने नौकर से कहा ---- " इसे पीटकर भगा दो l " शिष्य गोस्वामीजी के पास गया और बोला --- " नहीं दिया l बार - बार अधेला फेंकता ही रहा l "
गोस्वामीजी बोले ---- " तुमने गाली क्यों नही दी ? उसका स्वभाव गाली सुनकर काम करने का है l तुम्हे मालूम है कि तुम्हारे धैर्य के कारण देवत्व वहां इतना बढ़ा कि उसकी दुकान में आग लग गई l तुम भला - बुरा कह देते तो आग नहीं लगती l भगवान अपने शिष्यों का भला - बुरा कभी सहन नहीं करते l इसीलिए उसे दंड मिला l " इसी बीच दुकानदार दौड़ा - दौड़ा पेडे के पैकेट लिए आया l बोला ---- ' महाराज ! आपके चेले का हमसे अपमान हो गया l हमारी पूरी दुकान जल गई l "
यह है शुभ कर्मों की तीव्रता का परिणाम l
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