अंगुलिमाल कुख्यात डाकू था l उसने भगवान बुद्ध के सामीप्य को पा कर भिक्षु धर्म ग्रहण कर लिया l बुद्ध ने उसे प्रव्रज्या पर भेजा l जब वो भिक्षा मांगने पहुंचा तो गाँव के लोगों ने उसे पहचान कर उस पर पत्थरों की बरसात शुरू कर दी l अंगुलिमाल बुरी तरह घायल होकर आश्रम लौटा l बुद्ध उसकी स्थिति देखकर बोले --- " वत्स ! ये ठीक है कि अब तुम अहिंसा के पथ को स्वीकार कर चुके हो , पर हिंसा को उद्दत अन्य व्यक्तियों से रक्षार्थ तुम अपना कठोर स्वरुप तो कर सकते थे l यदि तुम केवल क्रुद्ध आँखों से उन्हें देख लेते तो तुम्हारी ये दशा नहीं होती l "
अंगुलिमाल बोला ----- " प्रभु मैं ये सोच कर कुछ नहीं बोला कि कल मैं बेहोश था , आज ये बेहोश हैं l कौन किससे किसकी रक्षा करे ? "
अंगुलिमाल बोला ----- " प्रभु मैं ये सोच कर कुछ नहीं बोला कि कल मैं बेहोश था , आज ये बेहोश हैं l कौन किससे किसकी रक्षा करे ? "
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