हमारा समाज पुरुष प्रधान है l नारी की अपेक्षा पुरुष का महत्व अधिक है l अधिकांश परिवारों में आज भी पुत्र होने पर खुशियाँ मनाई जाती हैं और पुत्री होने पर मायूसी छा जाती है l हमारे देश की अवरुद्ध प्रगति का एक कारण यह भी है कि महिलाओं के कल्याण की अनेक योजनाएँ बनने के बावजूद पुरुषों की मानसिकता , उनकी संकीर्ण सोच नारी की प्रगति में अनेक बाधाएं उपस्थित करती है l आज की सबसे बड़ी जरुरत है कि लड़के और लड़की में भेद न कर के उन्हें अच्छे संस्कार दें l यदि दोनों में से कोई भी संस्कारवान नहीं है तो वह अपने परिवार व समाज के लिए अभिशाप की तरह है l
इस संदर्भ में एक पौराणिक कथा है ------ मंकनक नामक एक साधक शिव भक्त था l लेकिन उसकी अनेक सांसारिक इच्छाएं थीं l अत: उसने शुभ दिन और शुभ मुहूर्त पर भगवान शिव की आराधना शुरू की l आखिर भगवान भोलेनाथ प्रसन्न हुए , उसके सामने प्रकट हुए और कहा --- " वर मांगो वत्स ! " मंकनक ने उनके सामने पुत्र की कामना प्रकट की l
इस पर भगवान शिव ने कहा --- " तुमने तपस्या पूर्ण की है , इसलिए वर माँगना तुम्हारा नैसर्गिक अधिकार है , लेकिन पुत्र किसलिए , पुत्री क्यों नहीं ?
इस पर मंकनक ने कहा ---- " पुत्र आगे चलकर सहायक बनता है , जबकि पुत्री तो विदा होकर ससुराल चली जाती है l "
यह उत्तर सुनकर भगवान शिव बोले ---- " वत्स मंकनक ! तुम तपस्वी हो , तुम्हे यह बोध होना चाहिए कि सहायक तो मनुष्य के कर्म होते हैं , कोई व्यक्ति विशेष किसी की सहायता नहीं करता l घर में पुत्र हो या पुत्री , उसे संस्कार देकर , शिक्षा प्रदान कर के , उसके व्यक्तित्व को समुन्नत बनाकर समाज को अर्पित करना माता - पिता का दायित्व है l अपने बच्चों से प्रतिदान की आशा तो पशु - पक्षी भी नहीं करते , फिर तुम तो मनुष्य हो l "
भगवान भोलेनाथ की बातों से मंकनक को जीवन की दिशा मिली l यह कथा मनुष्य समाज को यह प्रेरणा देती है कि व्यक्ति को किसी के सहारे न चलकर अपने कर्मों के सहारे चलना चाहिए l पुत्र व पुत्री में भेदभाव न कर के उन्हें अच्छे संस्कार देना चाहिए l
इस संदर्भ में एक पौराणिक कथा है ------ मंकनक नामक एक साधक शिव भक्त था l लेकिन उसकी अनेक सांसारिक इच्छाएं थीं l अत: उसने शुभ दिन और शुभ मुहूर्त पर भगवान शिव की आराधना शुरू की l आखिर भगवान भोलेनाथ प्रसन्न हुए , उसके सामने प्रकट हुए और कहा --- " वर मांगो वत्स ! " मंकनक ने उनके सामने पुत्र की कामना प्रकट की l
इस पर भगवान शिव ने कहा --- " तुमने तपस्या पूर्ण की है , इसलिए वर माँगना तुम्हारा नैसर्गिक अधिकार है , लेकिन पुत्र किसलिए , पुत्री क्यों नहीं ?
इस पर मंकनक ने कहा ---- " पुत्र आगे चलकर सहायक बनता है , जबकि पुत्री तो विदा होकर ससुराल चली जाती है l "
यह उत्तर सुनकर भगवान शिव बोले ---- " वत्स मंकनक ! तुम तपस्वी हो , तुम्हे यह बोध होना चाहिए कि सहायक तो मनुष्य के कर्म होते हैं , कोई व्यक्ति विशेष किसी की सहायता नहीं करता l घर में पुत्र हो या पुत्री , उसे संस्कार देकर , शिक्षा प्रदान कर के , उसके व्यक्तित्व को समुन्नत बनाकर समाज को अर्पित करना माता - पिता का दायित्व है l अपने बच्चों से प्रतिदान की आशा तो पशु - पक्षी भी नहीं करते , फिर तुम तो मनुष्य हो l "
भगवान भोलेनाथ की बातों से मंकनक को जीवन की दिशा मिली l यह कथा मनुष्य समाज को यह प्रेरणा देती है कि व्यक्ति को किसी के सहारे न चलकर अपने कर्मों के सहारे चलना चाहिए l पुत्र व पुत्री में भेदभाव न कर के उन्हें अच्छे संस्कार देना चाहिए l
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