पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने लिखा है ---- ' जिस तरह इस स्रष्टि में दिन के बाद रात आती है और रात के बाद पुन: सवेरा , वैसे ही यह चक्र लगातार चलता रहता है l इसी तरह जीवन में यदि सुख है , तो दुःख भी आता है l यदि सफलता है , तो असफलता का भी स्वाद मिलता है l यदि प्रसन्नता है , तो विषाद भी जीवन में कभी न कभी आता है l यदि सम्मान है , तो अपमान का दंश भी सहना होता है l ' आचार्य श्री ने आगे लिखा है ---- " जिस तरह रात्रि को हम दिन में नहीं बदल सकते , लेकिन विद्युत के माध्यम से बल्ब जलाकर अंधकार को दूर कर सकते हैं , उसी तरह हम दुःख , कष्ट , पीड़ा , अपयश आदि के आने पर इन्हें तुरंत दूर नहीं कर सकते , लेकिन इन परिस्थितियों में भगवदस्मरण करते हुए शुभ कर्म कर के इनसे लाभान्वित भी हो सकते हैं l
जीवन को यदि सही मायने में समझना है तो इस संसार के नकारात्मक व कष्टदायी दीखने वाले तत्वों को सकारात्मक द्रष्टि से देखना चाहिए और इनसे भी लाभान्वित होना चाहिए , क्योंकि ये सभी तत्व जीवन को निखारते व सँवारते हैं l
जीवन को यदि सही मायने में समझना है तो इस संसार के नकारात्मक व कष्टदायी दीखने वाले तत्वों को सकारात्मक द्रष्टि से देखना चाहिए और इनसे भी लाभान्वित होना चाहिए , क्योंकि ये सभी तत्व जीवन को निखारते व सँवारते हैं l
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