चिंता एक ऐसा रोग है जो हमें अंदर ही अंदर खोखला करता रहता है l एक विचारक का कहना है ---- " यदि चलने को तैयार खड़े जलयान में सोचने - विचारने की शक्ति होती , तो वह सागर की उत्ताल तरंगों को देखकर डर जाता कि ये तरंगे उसे निगल लेंगी और वह कभी भी बंदरगाह से बाहर नहीं निकलता l लेकिन जलयान सोच नहीं सकता इसलिए उसे चिंता नहीं होती कि जल में उतरने के बाद उसका क्या होगा , वह तो केवल चलता है l "
इसलिए कहा जाता है कि यदि मन बहुत सी आशंकाओं व चिंता से भर रहा हो तो कभी भी बैठकर उस के बारे में सोचना नहीं चाहिए l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य का कहना है कि ' व्यस्त रहो , मस्त रहो l चिंता करने के बजाये उसे सकरात्मक कार्यों में व्यस्त रखें l
इसलिए कहा जाता है कि यदि मन बहुत सी आशंकाओं व चिंता से भर रहा हो तो कभी भी बैठकर उस के बारे में सोचना नहीं चाहिए l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य का कहना है कि ' व्यस्त रहो , मस्त रहो l चिंता करने के बजाये उसे सकरात्मक कार्यों में व्यस्त रखें l
No comments:
Post a Comment