' पुण्यात्मा के संग से भले ही पापी में परिवर्तन न आये , पर पापी की घनिष्टता आग की तरह जलाए बिना नहीं रहती l '
इतिहास में ऐसे अनेकों उदाहरण हैं जो यह बताते हैं कि दु;संग होने से कैसे व्यक्ति का पतन हो जाता है l दुर्योधन को शकुनि मामा का साथ मिला , पूरा जीवन वह उनके साथ मिलकर पांडवों के विरुद्ध षड्यंत्र रचता रहा l अंत में कौरव वंश का सम्पूर्ण नाश हो गया l
कर्ण सूर्यपुत्र था , जन्मसे ही उसके शरीर पर कवच - कुण्डल थे , वह महादानी और महा वीर था l लेकिन उसकी मित्रता दुर्योधन से थी l सत्य , नीति और धर्म का उसे पूर्ण ज्ञान था लेकिन फिर भी उसने द्रोपदी का चीर हरण , अभिमन्यु वध आदि अनेक अवसरों पर दुर्योधन की अनीति का साथ दिया l यही कारण था कि उसे ईश्वर की कृपा नहीं मिली और अर्जुन के हाथों उसका वध हुआ l इसी तरह गंगा पुत्र भीष्म अनीति व अत्याचार देखकर भी मौन रहे , उन्हें तो इच्छा मृत्यु का वरदान था , फिर भी उन्हें अर्जुन के हाथों पराजित होना पड़ा और शर - शैया पर छह माह तक लेटे रहने का कष्ट उठाना पड़ा l
हमारे आचार्य , ऋषियों आदि का कहना है अत्याचार व अनीति देखकर मौन रहना , अनदेखी करना भी अत्याचार ही है l जिनके भीतर विवेक है वे अत्याचारी का साथ नहीं देते l जैसे विभीषण ने रावण को त्याग दिया , भक्त प्रह्लाद ने अनेकों कष्ट सहे लेकिन अपने पिता हिरण्यकशिपु की सत्ता को नहीं स्वीकार किया l
हमारे धर्म ग्रन्थ हमें जीवन जीना सिखाते हैं l हम अर्जुन की तरह बने l ईश्वर की नारायणी सेना चुनने के बजाय ईश्वर को ही चुने l ईश्वर की कृपा से ही व्यक्ति संसार में सफल होता है l
इतिहास में ऐसे अनेकों उदाहरण हैं जो यह बताते हैं कि दु;संग होने से कैसे व्यक्ति का पतन हो जाता है l दुर्योधन को शकुनि मामा का साथ मिला , पूरा जीवन वह उनके साथ मिलकर पांडवों के विरुद्ध षड्यंत्र रचता रहा l अंत में कौरव वंश का सम्पूर्ण नाश हो गया l
कर्ण सूर्यपुत्र था , जन्मसे ही उसके शरीर पर कवच - कुण्डल थे , वह महादानी और महा वीर था l लेकिन उसकी मित्रता दुर्योधन से थी l सत्य , नीति और धर्म का उसे पूर्ण ज्ञान था लेकिन फिर भी उसने द्रोपदी का चीर हरण , अभिमन्यु वध आदि अनेक अवसरों पर दुर्योधन की अनीति का साथ दिया l यही कारण था कि उसे ईश्वर की कृपा नहीं मिली और अर्जुन के हाथों उसका वध हुआ l इसी तरह गंगा पुत्र भीष्म अनीति व अत्याचार देखकर भी मौन रहे , उन्हें तो इच्छा मृत्यु का वरदान था , फिर भी उन्हें अर्जुन के हाथों पराजित होना पड़ा और शर - शैया पर छह माह तक लेटे रहने का कष्ट उठाना पड़ा l
हमारे आचार्य , ऋषियों आदि का कहना है अत्याचार व अनीति देखकर मौन रहना , अनदेखी करना भी अत्याचार ही है l जिनके भीतर विवेक है वे अत्याचारी का साथ नहीं देते l जैसे विभीषण ने रावण को त्याग दिया , भक्त प्रह्लाद ने अनेकों कष्ट सहे लेकिन अपने पिता हिरण्यकशिपु की सत्ता को नहीं स्वीकार किया l
हमारे धर्म ग्रन्थ हमें जीवन जीना सिखाते हैं l हम अर्जुन की तरह बने l ईश्वर की नारायणी सेना चुनने के बजाय ईश्वर को ही चुने l ईश्वर की कृपा से ही व्यक्ति संसार में सफल होता है l
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