17 April 2020

WISDOM ------- भय का भूत --- भयग्रस्त व्यक्ति एक संकट से अनेक संकट स्वत: पैदा कर लेते हैं

 नीति   कहती  है --- भय   आधी  मृत्यु  है  ,  इसलिए  किसी  को  अकारण   भय    नहीं  करना  चाहिए  ,  जो  अवश्यम्भावी   उसके  लिए   तो  भय  करना  और  भी  मूर्खता  है  l   उस  परिस्थिति  के  लिए  तो  शूरवीरों  की  तरह  तैयार  रहना  चाहिए    l    इस  सम्बन्ध  में  एक  कथा  है  -------     एक  बार  संसार  की  बिगड़ती  हुई  स्थिति  को  सुधारने  पर  विचार - विमर्श  के  लिए  विष्णु जी   को    शिवजी   ने    बुलाया  और  यमराज  को  भी  बुलाया   l    विष्णु जी  के  वाहन  गरुड़  बाहर  ही  रुके  ,  मीटिंग  देर  तक  चलती  इसलिए  वे  समय  बिताने  के  लिए    वहां  दाना  चुग  रहे  कबूतर  से  बात  करने  लगे  l
  निमंत्रण  मिलते  ही  उसी  समय  वहां  यमराज  आ  धमके  ,   कबूतर  को  वहां  देख   उन्हें  हंसी  आ  गई  और  अर्थपूर्ण  ढंग  से  मुस्कराते  हुए  वे  अंदर  चले  गए  l
 यमराज  को  देख  कबूतर  के  तो  प्राण   सूख   गए  l   उसने  गरुड़  से  कहा --- अवश्य  ही  मेरी  मृत्यु  आ  गई   है ,  इसलिए  यमराज  मुझे  देखकर   हँसे  l   तू  मुझे  किसी  सुरक्षित  स्थान  पर  पहुंचा  दो  l
  गरुड़  ने  उसे  बहुत  समझाया  ,  पर  भयभीत  कबूतर   ने  कुछ  न  सुनी   और  कहा --- ' आप  मुझे  विंध्याचल  की  नीलाद्रि  गुफा   तक  पहुंचा  दो ,  मैं  वहां  छुप  जाऊँगा  , सुरक्षित  रहूँगा  l '
गरुड़  तो  बहुत    तीव्र  गति  से  उड़ते  हैं  ,  कबूतर  को  अपनी  पीठ  पर   बैठाकर  विंध्याचल  की  नीलाद्रि  गुफा  में  छोड़  आये  l
उसी  समय  मीटिंग  खत्म   हो  गई  और  यमराज  बाहर  निकले  l   वहां  कबूतर  को  न  देखकर  उन्होंने   गरुड़  से  पूछा  कि --- तुम्हारे  साथ  जो  कबूतर  था  वह  कहाँ  गया  ?   गरुड़  ने  हंसकर  कहा --- महाराज  !  आपकी  विकराल  दाढ़ , लम्बी  मूंछ  और  भयंकर  आकृति   को  देख  वह  भयभीत  हो  गया  l   मैंने  बहुत  समझाया ,  वह  माना  नहीं  l   इसलिए  मैं  अभी - अभी  उसे  विंध्याचल  में  एक  सुरक्षित  स्थान  पर  छोड़कर  आया  हूँ  l  '  यमराज  ने  पूछा  --- वहां  आपने  किसी  और  को  तो  नहीं  देखा l
गरुड़  ने  कहा --- जिस  गुफा  में  मैं  उसे  छोड़कर  आया ,  वहां  एक  बिल्ली  के  पंजे  के  निशान  देखे  l   कोई  बात  है  क्या  l   यमराज  ने  कहा  ---- ' जब  मैं  यहाँ  से  निकला  तो  मैंने  कबूतर  के  मस्तक  पर   एक  लेख  पढ़ा ,-- लिखा  था  -- एक  घड़ी   बाद  उसे  विंध्याचल  की  बिल्ली  खा  जाएगी  l   मैंने  उसे  शिवलोक  में  देखकर   विचार  किया  कि   ब्रह्मा जी  भी  कभी - कभी  कितनी  भूल  करते  हैं   l   कहाँ  शिवलोक  और  कहा  विंध्याचल   ,  पर  अब  स्पष्ट  हो  गया  ,  वैसे  चाहे  कबूतर  बच  जाता  ,  पर  उसके   भय   ने   ब्रह्मा जी  के  लेख  को  सत्य  कर  दिया  l   कबूतर  उस  गुफा  में  भी  न  बच  सका ,  यथासमय  पर  उसे  बिल्ली  ने  खा  लिया  l
  इस  कथा  से  यही  शिक्षा  मिलती  है    कि   विपरीत  परिस्थितियों  में  हम  धैर्य  से  काम  लें  l   भयग्रस्त  न  हों  l   धैर्य , विवेक  और   आत्मविश्वास  से   समस्याओं  पर  विजय  पाई  जा  सकती  है  l

   

No comments:

Post a Comment