पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ------' धन और राज्य की लालसा मनुष्य को न्याय - अन्याय के प्रति अँधा बना देती है l लोभ उसकी आँखों पर पट्टी बाँध देता है कि उसे सिवाय अपनी लालसापूर्ति के और कोई बात दिखाई ही नहीं देती l परन्तु इस प्रकार का आचरण और आदर्श मनुष्य को कभी स्थायी रूप से लाभदायक नहीं हो सकता l ' अति की महत्वाकांक्षा और अहंकार के कारण ही अनेक राजाओं सिकंदर , चंगेज खां आदि ने दूर - दूर के देशों पर आक्रमण किया , अनेक चक्रवर्ती सम्राटों ने सभी देशों पर अपनी प्रभुसत्ता स्थापित की लेकिन साम्राजयवाद एक अभिशाप है l दूसरे को अपने आधीन करने की लालसा के कारण कभी बड़े - बड़े युद्ध हुए , यह धरती लाशों से पट गई l समय बदलने के साथ अब इसका रूप भी बदल गया l रूप चाहे जैसा हो , इसका खामियाजा हमेशा निर्दोष प्रजा को ही भरना पड़ता है l स्वार्थ और अहंकार के कारण बुद्धि , कुबुद्धि में बदल जाती है l छल - प्रपंच -षड्यंत्र में उलझ कर व्यक्ति न तो स्वयं चैन से जीता है और न दूसरों को चैन से जीने देता है l
No comments:
Post a Comment