पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं ----- " सुख बाँटने वाली , दुःख बँटाने वाली जीवन की एक ही विभूति है ---- संवेदना l आज चारों तरफ यही सूखती जा रही है l इसके अभाव में मनुष्य स्वार्थ केंद्रित , अहं केंद्रित हो गया है l यदि मनुष्य की मुरझाई जिंदगी को फिर से हरा - भरा करना है तो उसे संवेदनशील सृजन से सींचना होगा l निष्ठुरता , एकाकीपन , अलगाव से भरे आज के समाज में सतयुगी संभावनाएं तभी साकार होंगी जब मनुष्य के भीतर संवेदना जागेगी l जिस दिन मानव के अंदर मानवीय संवेदना जग जाएगी , उसी दिन मानव जीवन का स्वर्ण युग आएगा l
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