पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- अहंकार एक ऐसा दोष है जिसके उत्पन्न होते ही काम , क्रोध , लोभ , मोह , ईर्ष्या द्वेष आदि विकार उठ खड़े होते हैं l ' अहंकार का सबसे बड़ा दोष यह है कि अहंकारी चाहता है कि सब उसके आगे सिर झुकाएं , वही सर्वश्रेष्ठ है l अहंकार को जब पोषण नहीं मिलता तब यही अहंकार उसे काँटे की तरह चुभता है , घाव की तरह रिसता है l अहंकार घाव है , फिर हर चीज उसी में लगती है l अहंकारी स्वयं अपने लिए नरक की सृष्टि करता है , उससे किसी की हँसी , किसी की ख़ुशी देखी नहीं जाती l वह अपनी पूरी ऊर्जा दूसरों की ख़ुशी छीनने में ही गँवा देता है रावण , कंस , दुर्योधन , हिटलर आदि को उनका अहंकार ही खा गया l हिरण्यकश्यप तो स्वयं को भगवान समझने लगा था , उसके अहंकार को तो अपने ही पुत्र प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से ही चोट लगी l उसने अपने पुत्र को मृत्यु के मुँह में धकलने के असंख्य प्रयास किए l कहते हैं जिसके हृदय में ईश्वर के प्रति अगाध श्रद्धा और विश्वास हो , वह मृत्यु को दिन - रात अपने सामने देखकर भी विचलित नहीं होता क्योंकि उसे पता है कि उसके जीवन की बागडोर भगवान के हाथ में है l भगवान भी अपने भक्त को कष्ट देने वाले को कभी क्षमा नहीं करते l जब हिरण्यकश्यप अपने पुत्र प्रह्लाद को मारने दौड़ा तो नृसिंह भगवान खम्भे से प्रकट हो गए और हिरण्यकश्यप को अपनी गोदी में लिटाकर अपने नाखूनों से उसका पेट चीर डाला l जिस वरदान के बल पर वह इतना अहंकारी था , उसी से उसका अंत हो गया l
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