पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ------ " किसी को ईश्वर सम्पदा , विभूति अथवा सामर्थ्य देता है तो निश्चित रूप से उसके साथ कोई न कोई सद्प्रयोजन जुड़ा होता है l मनुष्य को समझना चाहिए कि यह विशेष अनुदान उसे किसी समाजोपयोगी कार्य के लिए ही मिला है l " यदि मनुष्य का विवेक जाग्रत नहीं है तो उसकी इन विभूतियों का उपयोग चालाक लोग अपने स्वार्थ के लिए कर लेते हैं जैसे औरंगजेब ने राजपूत राजाओं से मित्रता कर उनकी वीरता और पराक्रम का जी भरकर लाभ उठाया l मुट्ठी भर अंग्रेजों ने भारतीयों की मदद से ही इस देश को वर्षों तक गुलाम बनाए रखा l आचार्य श्री लिखते हैं ----- " आज के समय में भी सच्चे और ईमानदार व्यक्तियों को दीन-हीन देखा जाता है तो उसके पीछे एक कारण यह भी है कि उसका लाभ बुरे लोग उठा लेते हैं l " अधिकांशत: यह देखा जाता है कि व्यक्ति अपना विशेष जीवन स्तर बनाए रखने के लिए जानते - समझते हुए भी गलत लोगों का साथ देता है l सच्चाई संगठित नहीं होती है इसलिए उनकी अच्छाइयां निरर्थक चली जाती हैं l
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