पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " धन का आकर्षण बड़ा जबरदस्त है l जब लोभ सवार होता है तो मनुष्य अँधा हो जाता है और पाप -पुण्य में उसे कुछ भी फर्क नजर नहीं आता l पैसों के लिए वह बुरे से बुरे कर्म करने पर उतारू हो जाता है और अंत में स्वयं भी उस पाप के फल से नष्ट हो जाता है l ------ इसी सत्य को समझाने वाली एक कथा है ---- तीन मित्र किसी कार्य वश जा रहे थे l रात्रि में जो गाँव पड़ता , वहां विश्राम कर लेते l एक गाँव में उन्हें पता चला कि किसी दबंग ने गरीबों की जमीन हड़प ली और बहुत बड़ा सेठ बन गया l दूसरी रात्रि जिस गाँव में रुके वहां पता चला कि एक व्यक्ति ने चोरी ,डकैती और लूटपाट से अथाह संपदा एकत्र कर ली थी , उसकी संपदा को लूटने के लिए किसी ने उसकी हत्या कर दी l एक अन्य गाँव में पहुंचे तो वहां देखा कुछ महिलाएं सड़क के किनारे बैठी रो रहीं थीं , पूछने पर पता चला कि समर्थ लोगों ने ही उनका सब लूटकर उन्हें बेघर कर दिया l यह सब देख -सुनकर वे तीनों बहुत दुःखी हुए और विचार करने लगे कि ये पाप उत्पन्न कहाँ से होता है ? आखिर इस पाप का बाप कौन है ? उसे समाप्त कर देने से फिर पाप उत्पन्न नहीं होगा l अब तीनों पाप के उत्पत्ति स्थान का , कारण का पता लगाने चल दिए l रास्ते में उन्हें एक वृद्ध पुरुष मिला , उससे उन्होंने पूछा कि इस पाप का बाप कौन है ? वृद्ध ने पहाड़ की गुफा की ओर इशारा कर दिया l तीनों भागते -भागते उस गुफा तक पहुंचे तो देखा उसमे स्वर्ण ,हीरा , मोती , जवाहरात जगमगा रहे हैं l अब वे तीनों अपना उदेश्य तो भूल गए और यह संपदा इकट्ठी करने में लग गए l जितना भर सकते थे उतना भर लिया और चल पड़े l रास्ते में भूख लगी तो दो मित्र भोजन लेने गए और तीसरे से कहा --तुम इस कीमती माल की देखभाल करो l अब तीनों के मन में लोभ , लालच आ गया l जो दो भोजन लेने गए थे उनमें से एक ने चालाकी से दूसरे की हत्या कर दी और भोजन में विष मिला दिया ताकि जो सामान की देखभाल कर रहा है वह भोजन खाकर मर जाये तो पूरी संपदा उसकी हो जाएगी l इधर इसको भी लालच आ गया और दरवाजे के पीछे छुपकर बैठ गया l जैसे ही उसका मित्र भोजन लेकर आया उसने तलवार से उसकी हत्या कर दी और बड़ा प्रसन्न हुआ कि इस संपदा से अब वह ऐशो आराम का जीवन जिएगा l उसे बड़ी भूख लगी थी , उसने सोचा पहले खाना खा लें फिर चलें l भोजन में विष था , खाते ही उसके हाथ -पैर ऐंठने लगे औए वह भी मर गया l आचार्य श्री कहते हैं---- 'जब भी लालच के अवसर आएं तो बुद्धि को सतर्क रखना चाहिए l लोभ आते ही पाप की भावनाएं बढ़ती हैं , उत्पन्न होती हैं l बुद्धि काम नहीं करती , वह इस पाप का भयानक परिणाम समझ नहीं पाता l '
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