बेटे नास्तिक होते जा रहे थे | अक्सर वे कहते--" यदि ईश्वर है भी तो पक्षपाती है | किसी को सुख देता है किसी को दुःख | ऐसी अनीति बरतने वाले पर श्रद्धा नहीं जमती |" पिता को पता चला तो उसने बेटों को बुलाया | कहा तो कुछ नहीं , पर सामने एक ही खेत में कई तरह के पेड़-पौधे लगाने में उन्हें साथ ले लिया | बोया हुआ समयानुसार फलित हुआ ---- गन्ना मीठा, चिरायता कड़ुआ, गुलाब पर फूल , कँटीली पर काँटे, गुलाब से सुगंध, मरुआ से दुर्गंध जैसी भिन्नता थी | पिता ने बेटों को बुलाकर पूछा---" बच्चों ! हम लोगों ने एक ही दिन, एक ही भूमि पर पौधे लगाये थे, पर उनमे यह भिन्नता क्यों ? "
बच्चों ने एक साथ उत्तर दिया--" इसमें न जमीन का दोष है, न बोने वाले का | बीज की भिन्नता से ही पौधों में अंतर आया है | "
पिता ने कहा--" बच्चों ! भगवान न अन्यायी है, न पक्षपाती | मनुष्य अपने कर्मबीज बोता है और वैसा ही भला-बुरा काटता है | भिन्न परिस्थितियों का कारण भगवान नहीं, कर्ता का अपना पुरुषार्थ ही होता है |" लड़कों का समाधान हो गया, उनकी आस्था पुन: ईश्वरीय विधान में हुई |
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