जीवन परमात्मा का दिया एक अमूल्य वरदान है । चाहे इससे विभूतियाँ अर्जित कर लो चाहे दुर्गति
आज मनुष्य का जीवन सिर्फ शरीर और संसार तक ही सीमित रह गया है । धन-संपति और अधिकार ये दो ही मानव जीवन के लक्ष्य रह गये हैं । इन दोनों की प्राप्ति के लिये व्यक्ति उचित-अनुचित, न्याय-अन्याय का कुछ भी ध्यान नहीं रखता । इसका अर्थ यह नहीं कि वह कर्म करना छोड़ दे । इसका अर्थ है कि वह उनकी दिशा बदल दे । उसका हर कार्य आत्मिक उन्नति की भावना लिये, भगवान को समर्पित हो । जब हर कार्य भगवान को समर्पित किया जायेगा, तो स्वत: ही अनुचित कार्य नहीं बन पड़ेंगे ।
यदि हम वास्तव में सुख-शांति से भरा-पूरा जीवन जीना चाहते हैं, तो हमें अपनी आत्मिक उत्कृष्टताओं को उभारना होगा और अपनी सारी बुराइयों से संघर्ष करना होगा । मनुष्य के अंदर निहित दिव्यता, आत्मा की उत्कृष्टता ही बाहर विभिन्न गुणों--- प्रेम, ईमानदारी, क्षमा, प्रसन्नता, सज्जनता के रूप में अभिव्यक्त होती हैं ।
ईसा से किसी ने पूछा--- स्वर्ग में पहले प्रवेश किसे मिलेगा ? पास ही एक भोला बालक खेल रहा था । ईसा ने उसे गोद में उठाकर कहा ---- उसे, जो इसकी तरह भोला और निष्पाप हो । जो बच्चे की तरह निरहंकारी, सरल बनने का प्रयास करेगा, प्रभु उसे सबसे पहले मिलेगा । प्रभु के स्वर्ग के द्वार कुचक्री के लिये बंद हैं । पहले स्वयं को बालक की तरह सरल बना लो । जीवन भर वैसे ही जियो । यही प्रभुप्राप्ति का राजमार्ग है ।
आज मनुष्य का जीवन सिर्फ शरीर और संसार तक ही सीमित रह गया है । धन-संपति और अधिकार ये दो ही मानव जीवन के लक्ष्य रह गये हैं । इन दोनों की प्राप्ति के लिये व्यक्ति उचित-अनुचित, न्याय-अन्याय का कुछ भी ध्यान नहीं रखता । इसका अर्थ यह नहीं कि वह कर्म करना छोड़ दे । इसका अर्थ है कि वह उनकी दिशा बदल दे । उसका हर कार्य आत्मिक उन्नति की भावना लिये, भगवान को समर्पित हो । जब हर कार्य भगवान को समर्पित किया जायेगा, तो स्वत: ही अनुचित कार्य नहीं बन पड़ेंगे ।
यदि हम वास्तव में सुख-शांति से भरा-पूरा जीवन जीना चाहते हैं, तो हमें अपनी आत्मिक उत्कृष्टताओं को उभारना होगा और अपनी सारी बुराइयों से संघर्ष करना होगा । मनुष्य के अंदर निहित दिव्यता, आत्मा की उत्कृष्टता ही बाहर विभिन्न गुणों--- प्रेम, ईमानदारी, क्षमा, प्रसन्नता, सज्जनता के रूप में अभिव्यक्त होती हैं ।
ईसा से किसी ने पूछा--- स्वर्ग में पहले प्रवेश किसे मिलेगा ? पास ही एक भोला बालक खेल रहा था । ईसा ने उसे गोद में उठाकर कहा ---- उसे, जो इसकी तरह भोला और निष्पाप हो । जो बच्चे की तरह निरहंकारी, सरल बनने का प्रयास करेगा, प्रभु उसे सबसे पहले मिलेगा । प्रभु के स्वर्ग के द्वार कुचक्री के लिये बंद हैं । पहले स्वयं को बालक की तरह सरल बना लो । जीवन भर वैसे ही जियो । यही प्रभुप्राप्ति का राजमार्ग है ।
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