अरस्तू जैसा गुरु पा कर ही सिकंदर महान बना था । एक साधारण मिट्टी से बने राजकुमार को फौलादी बना देने का सारा श्रेय अरस्तू को जाता है । विद्वान् अरस्तू का सारा जीवन लोक-शिक्षण को समर्पित था । व्यक्ति निर्माण उनका मूल मंत्र था । अरस्तू ने ऐथेंस में लीसियम नामक संस्कृतिक विश्वविद्दालय की स्थापना की, जिसमे हजारों छात्र विद्दा अध्ययन करते थे । सारे संसार में यूनान की यह ज्ञानपीठ एक से एक योग्य निकाल सकने के कारण काफी प्रख्यात हुई । इस विद्दापीठ को सिकंदर की सहायता प्राप्त थी ।
अरस्तू के लिखे सभी ग्रंथ आज उपलब्ध नहीं हैं, पर जो हैं उनसे पता चलता है कि उन्हें तर्कशास्त्र, खगोल विद्दा, भौतिकी, विकासवाद, कामशास्त्र, वायुविज्ञान, प्रकृतिविद्दा, जीवशास्त्र, काव्य, अलंकार, मनोविज्ञान, राजनीति, दर्शन, अध्यात्म आदि अनेक विषयों का अगाध ज्ञान था । अरस्तू ने सामूहिक जीवन को अनिवार्य माना है ।
अरस्तू के लिखे सभी ग्रंथ आज उपलब्ध नहीं हैं, पर जो हैं उनसे पता चलता है कि उन्हें तर्कशास्त्र, खगोल विद्दा, भौतिकी, विकासवाद, कामशास्त्र, वायुविज्ञान, प्रकृतिविद्दा, जीवशास्त्र, काव्य, अलंकार, मनोविज्ञान, राजनीति, दर्शन, अध्यात्म आदि अनेक विषयों का अगाध ज्ञान था । अरस्तू ने सामूहिक जीवन को अनिवार्य माना है ।
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