आज की सबसे बड़ी समस्या है कि लोगों के मन में शांति नहीं है l अशांत मन का व्यक्ति अपने आसपास अशांति फैलाता है और इस तरह अशांत मन के लोगों की श्रंखला बढ़ती जाती है और धीरे -धीरे विकृत रूप ले लेती है l इस अशांति की शुरुआत परिवारों से ही होती है l यह आदिकाल से चला आ रहा है l भगवान श्रीराम को वनवास माता कैकेयी की जिद्द और पिता दशरथ के आदेश से हुआ l कोई बाहरी हस्तक्षेप नहीं था l इसी तरह महाभारत में पांडवों के विरुद्ध जितने भी षड्यंत्र रचे गए , उन्हें वर्षों तक जितना भी उत्पीड़ित किया गया वह उन्ही के चचेरे भाइयों --दुर्योधन आदि कौरवों द्वारा किया गया l हमारे धर्मग्रन्थ रामायण और महाभारत हमें जागरूक करने के लिए है l इन महाकाव्यों के रचनाकार को पता था कि कलियुग में जब स्वार्थ , लालच , ईर्ष्या , द्वेष , महत्वाकांक्षा और दुर्बुद्धि का प्रतिशत बहुत बढ़ जायेगा तब ये पारिवारिक मतभेद और वीभत्स रूप ले लेंगे l ये महाकाव्य हमारे लिए प्रकाश स्तम्भ हैं l कलियुग में लोगों के पास बुद्धि तो बहुत है लेकिन विवेक नहीं है इसलिए वे अपनी बुद्धि का दुरूपयोग करते हैं l परिवार में , समाज में स्वयं को अग्रणी और अन्यों को गिरा -पड़ा बनाने के लिए ताकि लोग मदद के लिए हमेशा उनका मुँह ताकते रहें , इसके लिए लोग तंत्र , मन्त्र , ब्लैक मैजिक , नकारात्मक क्रियाएं आदि का सहारा लेते हैं l इन कार्यों का सबूत तो केवल ईश्वर के पास होता है , कानून के पास नहीं l अपराध चाहे कैसा भी हो , यह सत्य है कि उसकी शुरुआत परिवार से ही होती है l परिवार में ही छोटी -छोटी चोरी कर के व्यक्ति बड़ा चोर बन जाता है l धन -संपत्ति चुराने से भी बड़ा एनर्जी वैम्पायर भी बन जाता है l ऐसे लोग रावण की तरह कई चेहरे वाले होते हैं l इन्हें पहचानना कठिन है क्योंकि समाज में इनकी बड़ी प्रतिष्ठा होती है , परिवार में भी यही दिखाते हैं कि वे ही सब के हितेषी हैं l ईश्वर की कृपा से जब ऐसे लोगों की असलियत समझ में आ जाये तो हमारे आचार्य , ऋषियों का मत है कि दुष्टों से न तो मित्रता करो और न ही वैर रखो l इन्हें त्याग दो जैसे विभीषण ने रावण को त्याग दिया और भगवान श्रीराम की शरण में आ गया l पांडव भगवान श्रीकृष्ण की शरण में आ गए l जो ईश्वर का शरणागत हुआ वह सफल हुआ और अत्याचारी का अंत तो सुनिश्चित है l