आज संसार में सबसे ज्यादा अशांति इसलिए है क्योंकि लोगों में आत्मबल की कमी है l वे अपने ऊपर होने वाले शारीरिक , मानसिक , प्रत्यक्ष , अप्रत्यक्ष अत्याचार को भी चुपचाप सहते हैं और दूसरों पर होने वाले अत्याचार को भी जानते -समझते हुए अनदेखा करते हुए हमेशा अत्याचारी , अन्यायी का ही साथ देते हैं l उन्हें अपने परिवार की सुरक्षा का , अपनी प्रतिष्ठा का , व्यवसाय का , अत्याचारी के साथ से मिलने वाले विभिन्न लाभों के खो जाने का डर है और इन सबसे बढ़कर एक डर यह भी सताता है कि कहीं अत्याचारी का विरोध करने से उनके चेहरे का एक दूसरा छिपा हुआ पक्ष समाज के सामने न आ जाए l अपनी आत्मा की आवाज को न सुनना और डर में जीने से व्यक्ति तनाव और उससे जुड़ी बीमारियों से ग्रस्त हो जाता है l पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' हम में ' न ' कहने की हिम्मत होनी चाहिए l गलत का समर्थन नहीं करूँगा , उसमें सहयोग नहीं दूंगा l जिसमें इतना भी साहस न हो उसे मनुष्य नहीं माना जा सकता l " ------- एक राक्षस था , उसने एक आदमी को पकड़ा l उसको खाया नहीं , डराया भर और बोला --- " मेरी मरजी के कामों में निरंतर लगा रह , यदि ढील की तो खा जाउँगा l " वह आदमी जब तक उससे संभव था काम करता रहा l जब थककर चूर -चूर हो गया और जब काम सामर्थ्य से बाहर हो गया तो उसने सोचा कि तिल -तिलकर मरने से तो एक दिन पूरी तरह मरना अच्छा है l उसने राक्षस से कह दिया ---- " जो मरजी हो सो करे l मैं इस तरह अब और नहीं कर सकता l " अब राक्षस ने भी सोचा कि काम का आदमी है l थोड़ा -थोड़ा काम बहुत दिन करता रहे तो क्या बुरा है ? एक दिन खा जाने पर तो उस लाभ से भी हाथ धोना पड़ेगा , जो उसके द्वारा मिलता रहता है l राक्षस ने उसे खाया नहीं , उससे समझौता कर लिया , थोड़ा -थोड़ा काम करते रहने की बात मान ली l