' भूखे - नंगे निराश्रित अलेक्सी ने परिस्थितियों से जो लड़ाई लड़ी , साथ ही विकृतियों से जो संघर्ष किया यह तथ्य उन्हें मेक्सिम गोर्की बनाने में सहायक रहा l '
14 मार्च 1858 को रूस में जन्मे अलेक्सी ( मेक्सिम गोर्की ) को बचपन में घोर गरीबी और विवशता का सामना करना पड़ा । वे रात्रि को रेलवे स्टेशन पर चौकीदारी करते और दिन भर अपनी बदबू और सीलन भरी कोठरी में कुछ पढ़ते लिखते रहते । । कूड़े के ढेर से कागजों को उठाकर तुड़े- मुड़े, सड़े-गले रहे अक्षरों को जोड़कर उसने पढ़ना सीखा था जब कभी किसी के पास कोई अच्छी पुस्तक का पता चलता , तो उसकी मजदूरी करता और बदले में एक - आध दिन के लिए किताब मांग कर पढ़ लेता । ।
युवक अलेक्सी रात को डोबोरिका रेलवे स्टेशन पर चौकदारी करता था , भूख से पीड़ित वहां आटा चुराने आते थे । एक रात एक जवान स्त्री , फटेहाल, भूख से पीड़ित कुछ आटे के लिए कुत्सित प्रयास करती है l अलेक्सी उसे वहां से जाने के लिए कहता है । वह स्त्री आश्चर्य करती है , अलेक्सी ने कुछ सिक्के उसके हाथ पर रख दिए और कहा -- " इन्हें ले जाओ , फिर यहाँ आने का प्रयास मत करना l " वह स्त्री अपने कुत्सित व्यवहार पर लज्जित हुई और वह युवक अलेक्सी के चरित्र बल की अभ्यर्थना करती हुई लौट गई ।
यही युवक अलेक्सी आगे चलकर रुसी भाषा का प्रख्यात , विश्व विख्यात साहित्यकार मेक्सिम गोर्की बना ।
बालक अलेक्सी ने बाल्यकाल से ही मनुष्य का यह पतन देखा था , इस पतन पर वह मन ही मन बहुत रोया था l वह चाहता था मनुष्य अपनी मानवीय गरिमा के साथ जीना सीखे पर वह इतना छोटा था कि संसार को कैसे सिखाये सब l आगे चलकर उसने अपनी इस अभिलाषा को लेखन कार्य से पूर्ण किया l गोर्की ने एक सफल लेखक और साहित्यकार के रूप में पीड़ित मानवता की सेवा की l उनकी रचनाओं में गिरे हुए को ऊपर उठाने की प्रेरणा भरी होती थी l धन भी खूब आया उनके पास l वे उसका एक तिहाई अपने पास रखते थे और उसका शेष सब जरुरत मंद देशवासी भाइयों को दे दिया करते थे l ।
एक दीन - हीन बालक के रूप में दर - दर भटकने वाला गोर्की अपने संकल्प , अपनी लगन और क्रान्तिकारी विचारों के कारण इतना समर्थ हो गया था कि लेनिन के साम्यवादी दल को पांच हजार रूबल प्रतिवर्ष दिया करते थे
14 मार्च 1858 को रूस में जन्मे अलेक्सी ( मेक्सिम गोर्की ) को बचपन में घोर गरीबी और विवशता का सामना करना पड़ा । वे रात्रि को रेलवे स्टेशन पर चौकीदारी करते और दिन भर अपनी बदबू और सीलन भरी कोठरी में कुछ पढ़ते लिखते रहते । । कूड़े के ढेर से कागजों को उठाकर तुड़े- मुड़े, सड़े-गले रहे अक्षरों को जोड़कर उसने पढ़ना सीखा था जब कभी किसी के पास कोई अच्छी पुस्तक का पता चलता , तो उसकी मजदूरी करता और बदले में एक - आध दिन के लिए किताब मांग कर पढ़ लेता । ।
युवक अलेक्सी रात को डोबोरिका रेलवे स्टेशन पर चौकदारी करता था , भूख से पीड़ित वहां आटा चुराने आते थे । एक रात एक जवान स्त्री , फटेहाल, भूख से पीड़ित कुछ आटे के लिए कुत्सित प्रयास करती है l अलेक्सी उसे वहां से जाने के लिए कहता है । वह स्त्री आश्चर्य करती है , अलेक्सी ने कुछ सिक्के उसके हाथ पर रख दिए और कहा -- " इन्हें ले जाओ , फिर यहाँ आने का प्रयास मत करना l " वह स्त्री अपने कुत्सित व्यवहार पर लज्जित हुई और वह युवक अलेक्सी के चरित्र बल की अभ्यर्थना करती हुई लौट गई ।
यही युवक अलेक्सी आगे चलकर रुसी भाषा का प्रख्यात , विश्व विख्यात साहित्यकार मेक्सिम गोर्की बना ।
बालक अलेक्सी ने बाल्यकाल से ही मनुष्य का यह पतन देखा था , इस पतन पर वह मन ही मन बहुत रोया था l वह चाहता था मनुष्य अपनी मानवीय गरिमा के साथ जीना सीखे पर वह इतना छोटा था कि संसार को कैसे सिखाये सब l आगे चलकर उसने अपनी इस अभिलाषा को लेखन कार्य से पूर्ण किया l गोर्की ने एक सफल लेखक और साहित्यकार के रूप में पीड़ित मानवता की सेवा की l उनकी रचनाओं में गिरे हुए को ऊपर उठाने की प्रेरणा भरी होती थी l धन भी खूब आया उनके पास l वे उसका एक तिहाई अपने पास रखते थे और उसका शेष सब जरुरत मंद देशवासी भाइयों को दे दिया करते थे l ।
एक दीन - हीन बालक के रूप में दर - दर भटकने वाला गोर्की अपने संकल्प , अपनी लगन और क्रान्तिकारी विचारों के कारण इतना समर्थ हो गया था कि लेनिन के साम्यवादी दल को पांच हजार रूबल प्रतिवर्ष दिया करते थे
No comments:
Post a Comment