संत ज्ञानेश्वर की मान्यता थी कि पूजा - पाठ तब तक अधूरा है , जब तक ह्रदय में सेवा और सदभावनाएँ नहीं हैं | उन्होंने अपने सद्व्यवहार और आत्मीयता से कई लोगों को सन्मार्ग पर लगाया उनके सद्गुणों और लोगों के प्रति मधुर व आत्मीय व्यवहार से ही उनकी वाणी में बल तथा प्रभाव उत्पन्न होता था जिसने अनेकों के ह्रदय परिवर्तन कर दिए l
उन्होंने केवल प्रवचन और उपदेशों द्वारा ही नहीं , लेखनी और क्रियाओं द्वारा भी मानव मूल्यों के प्रतिपादक धर्म का प्रचार किया । उनकी रचित ज्ञानेश्वरी गीता , योग वशिष्ठ पर टीका ---
अमृता नुभव आदि पुस्तकें आज भी आध्यात्मिक साहित्य की अमूल्य सम्पदा मानी जाती हैं ।
उन्होंने केवल प्रवचन और उपदेशों द्वारा ही नहीं , लेखनी और क्रियाओं द्वारा भी मानव मूल्यों के प्रतिपादक धर्म का प्रचार किया । उनकी रचित ज्ञानेश्वरी गीता , योग वशिष्ठ पर टीका ---
अमृता नुभव आदि पुस्तकें आज भी आध्यात्मिक साहित्य की अमूल्य सम्पदा मानी जाती हैं ।
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