आचार्य श्री ने लिखा है --- ' न हमें टूटना चाहिए और न हार माननी चाहिए l नियति के क्रम से हर वस्तु का , हर व्यक्ति का अवसान होता है l '
मनोरथ और प्रयास भी सर्वदा सफल कहाँ होते हैं l यह सब अपने ढंग से चलता रहे ,
पर मनुष्य भीतर से टूटने न पाए , इसी में उसका गौरव है l समुद्र तट पर जमी हुई चट्टानें चिर - अतीत से अपने स्थान पर जमी अड़ी बैठी हैं l हिलोरों ने अपना टकराना बंद नहीं किया सो ठीक है , पर यह भी कहाँ गलत है कि चट्टानों ने हार नहीं मानी l
मनोरथ और प्रयास भी सर्वदा सफल कहाँ होते हैं l यह सब अपने ढंग से चलता रहे ,
पर मनुष्य भीतर से टूटने न पाए , इसी में उसका गौरव है l समुद्र तट पर जमी हुई चट्टानें चिर - अतीत से अपने स्थान पर जमी अड़ी बैठी हैं l हिलोरों ने अपना टकराना बंद नहीं किया सो ठीक है , पर यह भी कहाँ गलत है कि चट्टानों ने हार नहीं मानी l
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