श्रीमद भगवद्गीता में भगवान कहते हैं --- ज्ञानी का लक्षण यह है कि वह जीवन के प्रत्येक दुःख , प्रत्येक कष्ट में दूसरों के नहीं , अपने दोष ढूंढता है l वह सोचता है कि जरूर हमने कोई दोष किया , कोई भूल हुई हमसे , जिसका परिणाम हम भोग रहे हैं l
लेकिन अज्ञानी हमेशा दूसरों को दोषी ठहरता है इसलिए वह अपने दोषों से मुक्त नहीं होता है l
यदि अपने हर दुःख , कष्ट , पीड़ा और हर रोग में हमें अपनी कमियां , अपने दोष समझ में आने लगें तो हम आगे ऐसी गलतियां नहीं करेंगे जिनके कारन जीवन दुःखमय हो गया l
जब मन में यह सत्य गहराई से बैठ गया कि सभी दुःख हमारे अपने ही कारण पैदा हुए हैं , ऐसा होश आने पर हम उन कारणों को हटाने लगेंगे l और हमारा मन संस्कारित होने लगेगा l
लेकिन अज्ञानी हमेशा दूसरों को दोषी ठहरता है इसलिए वह अपने दोषों से मुक्त नहीं होता है l
यदि अपने हर दुःख , कष्ट , पीड़ा और हर रोग में हमें अपनी कमियां , अपने दोष समझ में आने लगें तो हम आगे ऐसी गलतियां नहीं करेंगे जिनके कारन जीवन दुःखमय हो गया l
जब मन में यह सत्य गहराई से बैठ गया कि सभी दुःख हमारे अपने ही कारण पैदा हुए हैं , ऐसा होश आने पर हम उन कारणों को हटाने लगेंगे l और हमारा मन संस्कारित होने लगेगा l
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