राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन उन दिनों बीमार थे l उन्हें देखने के लिए उनके एक पुराने साथी प्रयाग गए l तब राजर्षि ने बातों ही बातों में अपना एक संस्मरण सुनाया ----- " किसी समय मैं
देशी रियासतों में राजाओं का सुधार करने के लिए एक आदर्श योजना बना रहा था ताकि यह दिखाने का अवसर मिले कि भारतीय अंग्रेजों से अच्छा शासन कर सकते हैं l इसी उद्देश्य के लिए बनाई गई योजना को क्रियान्वित करने मैंने नाभा रियासत में नौकरी की , परन्तु मैं असफल
रहा l " उनके मित्र ने कहा --- " यह तो बड़ा अच्छा रहा l '
टंडन जी बोले ---- " यही तो मैं भी कहना चाहता था l अंग्रेजों के कारण मैं असफल हुआ तो मैंने अपना ध्यान अंग्रेजों को यहाँ से हटाने में लगाया l ईश्वर के प्रति मैं धन्यवाद से भर गया हूँ l नाभा में सफल होने पर संभव था मैं कूपमंडूक बना रह जाता l इस असफलता ने मेरे लिए सफलता और साधना का नया द्वार खोल दिया l '
अपने कार्यों मिली सफलता - असफलता के प्रति समान दृष्टि और सकारात्मक सोच अपनाने से ही वे राजर्षि उपाधि के अधिकारी सिद्ध होते रहे l यह प्रसंग हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा दायक है जो असफलताओं से जूझ रहे हैं , आगे बढ़ने को प्रयत्नशील हैं l
देशी रियासतों में राजाओं का सुधार करने के लिए एक आदर्श योजना बना रहा था ताकि यह दिखाने का अवसर मिले कि भारतीय अंग्रेजों से अच्छा शासन कर सकते हैं l इसी उद्देश्य के लिए बनाई गई योजना को क्रियान्वित करने मैंने नाभा रियासत में नौकरी की , परन्तु मैं असफल
रहा l " उनके मित्र ने कहा --- " यह तो बड़ा अच्छा रहा l '
टंडन जी बोले ---- " यही तो मैं भी कहना चाहता था l अंग्रेजों के कारण मैं असफल हुआ तो मैंने अपना ध्यान अंग्रेजों को यहाँ से हटाने में लगाया l ईश्वर के प्रति मैं धन्यवाद से भर गया हूँ l नाभा में सफल होने पर संभव था मैं कूपमंडूक बना रह जाता l इस असफलता ने मेरे लिए सफलता और साधना का नया द्वार खोल दिया l '
अपने कार्यों मिली सफलता - असफलता के प्रति समान दृष्टि और सकारात्मक सोच अपनाने से ही वे राजर्षि उपाधि के अधिकारी सिद्ध होते रहे l यह प्रसंग हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा दायक है जो असफलताओं से जूझ रहे हैं , आगे बढ़ने को प्रयत्नशील हैं l
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