गौ सेवा के अग्रणी सेठ जमनालाल बजाज वृंदावन गए थे , वहां उन्हें जो अनुभूति हुई उससे वे सोचने लगे कि भारतीय संस्कृति में गौ को माँ कहकर पूजनीय माना जाता है लेकिन उसे घरों में बांधकर चारा - पानी के लिए तरसाने वाले कम नहीं है , दूध की आखिरी बूंद तक दुहकर बछड़े को भूख से तड़पता छोड़ने वाले भी गाय को माता कहते हैं l
एक वृद्ध खानसामा उन्हें बताया कि ---' एक अमेरिकन पशु विशेषज्ञ मि. ह्यूमैन भारत आये थे l गायों की नस्ल सुधारने के लिए उन्होंने कई देशों का भ्रमण किया l संस्कृत का अध्ययन किया l उनका कहना था कि पुस्तकों में गाय को कामधेनु कहा गया है l उन्हें इस बात की धुन लगी थी कि मैं संस्कृत की इन पुस्तकों में लिखे एक - एक शब्द का प्रयोग करूँगा l हमारे पवित्र ग्रंथों में गाय की जो महिमा है , उसकी सच्चाई जानने की उन्हें ललक थी l
उन्होंने आगरा से पंद्रह मील दूर एक ढाक का जंगल खरीद लिया और वही अपना छोटा सा बंगला बना लिया l उस बंगले पर ह्यूमन साहब , वह खानसामा , कपिला गाय और उसकी बछड़ी रहते थे l
ह्यूमैन साहब ने अपने जीवन , रहन - सहन सबमें परिवर्तन कर लिया , चाय भी छोड़ दी l गाय के ऊपर मक्खी - मच्छर उड़ाते , शाम से गाय के पास दीपक जलाते जो रात भर जलता , वहीँ चटाई बिछाकर सोते , बहुत सेवा करते l वह खानसामा दोपहर को जंगल में खाना दे आता l छह महीने बीत गए l एक दिन उसने सोचा कि देखें यह साहब जंगल में क्या करते हैं l वह एक झाड़ी में छुप गया l और जो दृश्य देखा तो चीख कर बेहोश हो गया --- गाय ढाक के पेड़ के नीचे बैठी थी , बछड़ी पास में फुदक रही थी , साहब घुटनों के बल बैठे हाथ जोड़ प्रार्थना कर रहे थे , उनकी आँखों से निरंतर आंसू झर रहे थे और आश्चर्य ! वह गाय साफ अंग्रेजी बोल रही थी l
यह अनुभूति बताते हुए उसकी आँखें भर आईं l
उसने बताया कि ह्यूमन साहब तो अब नहीं रहे , सामने जो गाय है वह उसी कपिला गाय कामधेनु की बछड़ी है l उसने उन्हें ढाक के पत्ते से दोना बनाकर दिया और कहा कि गाय के थन के पास बैठ जाओ l गाय से कहा --- ' अम्मा , मेहमान आये हैं अपने घर l ' और आश्चर्य ! गाय के चारों थनों से दूध की धारा बहने लगी , ऐसा स्वादिष्ट दूध उन्होंने पहले कभी नहीं पिया था l
वृंदावन की इस अनुभूति ने जमनालाल जी के जीवन में चमत्कारी परिवर्तन किये l अक्टूबर 1 9 4 1 में उन्होंने वर्धा में गौ सेवा संघ की स्थापना की l नाम और यश से दूर गौ -पुरी में निवास किया l श्रद्धा और विश्वास से , सत्य के अन्वेषक के लिए सब कुछ संभव है l
एक वृद्ध खानसामा उन्हें बताया कि ---' एक अमेरिकन पशु विशेषज्ञ मि. ह्यूमैन भारत आये थे l गायों की नस्ल सुधारने के लिए उन्होंने कई देशों का भ्रमण किया l संस्कृत का अध्ययन किया l उनका कहना था कि पुस्तकों में गाय को कामधेनु कहा गया है l उन्हें इस बात की धुन लगी थी कि मैं संस्कृत की इन पुस्तकों में लिखे एक - एक शब्द का प्रयोग करूँगा l हमारे पवित्र ग्रंथों में गाय की जो महिमा है , उसकी सच्चाई जानने की उन्हें ललक थी l
उन्होंने आगरा से पंद्रह मील दूर एक ढाक का जंगल खरीद लिया और वही अपना छोटा सा बंगला बना लिया l उस बंगले पर ह्यूमन साहब , वह खानसामा , कपिला गाय और उसकी बछड़ी रहते थे l
ह्यूमैन साहब ने अपने जीवन , रहन - सहन सबमें परिवर्तन कर लिया , चाय भी छोड़ दी l गाय के ऊपर मक्खी - मच्छर उड़ाते , शाम से गाय के पास दीपक जलाते जो रात भर जलता , वहीँ चटाई बिछाकर सोते , बहुत सेवा करते l वह खानसामा दोपहर को जंगल में खाना दे आता l छह महीने बीत गए l एक दिन उसने सोचा कि देखें यह साहब जंगल में क्या करते हैं l वह एक झाड़ी में छुप गया l और जो दृश्य देखा तो चीख कर बेहोश हो गया --- गाय ढाक के पेड़ के नीचे बैठी थी , बछड़ी पास में फुदक रही थी , साहब घुटनों के बल बैठे हाथ जोड़ प्रार्थना कर रहे थे , उनकी आँखों से निरंतर आंसू झर रहे थे और आश्चर्य ! वह गाय साफ अंग्रेजी बोल रही थी l
यह अनुभूति बताते हुए उसकी आँखें भर आईं l
उसने बताया कि ह्यूमन साहब तो अब नहीं रहे , सामने जो गाय है वह उसी कपिला गाय कामधेनु की बछड़ी है l उसने उन्हें ढाक के पत्ते से दोना बनाकर दिया और कहा कि गाय के थन के पास बैठ जाओ l गाय से कहा --- ' अम्मा , मेहमान आये हैं अपने घर l ' और आश्चर्य ! गाय के चारों थनों से दूध की धारा बहने लगी , ऐसा स्वादिष्ट दूध उन्होंने पहले कभी नहीं पिया था l
वृंदावन की इस अनुभूति ने जमनालाल जी के जीवन में चमत्कारी परिवर्तन किये l अक्टूबर 1 9 4 1 में उन्होंने वर्धा में गौ सेवा संघ की स्थापना की l नाम और यश से दूर गौ -पुरी में निवास किया l श्रद्धा और विश्वास से , सत्य के अन्वेषक के लिए सब कुछ संभव है l
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