भारत का इतिहास राजपूतों की वीरता , शौर्य और उनके आन - बान की गाथाओं से भरा है l अपने वाङ्मय ' महापुरुषों के अविस्मरणीय जीवन प्रसंग ' में आचार्य श्री लिखते हैं ----- " यही सब कुछ नहीं होता l उनमें इन गुणों के सदुपयोग और एकता की भावना का सर्वथा अभाव था l राजपूत राजाओं से मुगलों ने दोस्ती की थी , किन्तु यह मित्रता नीतिसंगत और व्यवहारिक नहीं थी l यह तो बेर और कदली के सामीप्य जैसी मित्रता थी l उसके फलस्वरूप राजपूतों का गौरव तो कम हुआ ही , पराधीनता का कलंक भी भारत भूमि को ढोना पड़ा l
राजा जसवंतसिंह जोधपुर के राजा थे , बहुत वीर और पराक्रमी थे , इसका उन्हें गर्व भी था l औरंगजेब ने उनसे मित्रता की और उनकी वीरता और पराक्रम का जी भरकर लाभ उठाया l राजा जसवंतसिंह ने यह न सोचा कि क्रूर और अन्यायी औरंगजेब जब अपने पिता को कैद कर सकता है , भाइयों का कत्ल करा सकता है तो वह उनके परिवार और राज्य पर संकट ला सकता है l
' कुटिल की मित्रता और अपना अति अभिमान उनके परिवार और राज्य पर संकट आने का कारण बना l " औरंगजेब ने जसवंतसिंह को ही नहीं , उनके पुत्रों को भी धोखे से मरवा दिया l
आचार्य श्री लिखते हैं ---- ' राजा जसवंतसिंह के पास जो बल विक्रम था वह सही दिशा में न होकर गलत दिशा में प्रयुक्त हुआ l वह स्वयं उनके लिए , उनके परिवार के लिए तथा हिन्दू जाति के लिए निरुपयोगी ही सिद्ध नहीं हुआ वरन उसका लाभ उठाकर औरंगजेब ने अपना स्वार्थ सिद्ध किया l किसी को ईश्वर सम्पदा , विभूति अथवा सामर्थ्य देता है तो निश्चित रूप से उसके साथ कोई न कोई सद्प्रयोजन जुड़ा होता है l मनुष्य को यह समझना चाहिए कि यह विशेष अनुदान उसे किसी समाजोपयोगी कार्य के लिए ही मिला l मनुष्य को जागरूक रहकर यह देखन चाहिए कि उसका लाभ गलत व्यक्ति तो नहीं उठा रहे l नहीं तो यह अच्छाइयाँ भी राजा जसवंतसिंह के पराक्रम की तरह निरर्थक चली जाएँगी l "
राजा जसवंतसिंह जोधपुर के राजा थे , बहुत वीर और पराक्रमी थे , इसका उन्हें गर्व भी था l औरंगजेब ने उनसे मित्रता की और उनकी वीरता और पराक्रम का जी भरकर लाभ उठाया l राजा जसवंतसिंह ने यह न सोचा कि क्रूर और अन्यायी औरंगजेब जब अपने पिता को कैद कर सकता है , भाइयों का कत्ल करा सकता है तो वह उनके परिवार और राज्य पर संकट ला सकता है l
' कुटिल की मित्रता और अपना अति अभिमान उनके परिवार और राज्य पर संकट आने का कारण बना l " औरंगजेब ने जसवंतसिंह को ही नहीं , उनके पुत्रों को भी धोखे से मरवा दिया l
आचार्य श्री लिखते हैं ---- ' राजा जसवंतसिंह के पास जो बल विक्रम था वह सही दिशा में न होकर गलत दिशा में प्रयुक्त हुआ l वह स्वयं उनके लिए , उनके परिवार के लिए तथा हिन्दू जाति के लिए निरुपयोगी ही सिद्ध नहीं हुआ वरन उसका लाभ उठाकर औरंगजेब ने अपना स्वार्थ सिद्ध किया l किसी को ईश्वर सम्पदा , विभूति अथवा सामर्थ्य देता है तो निश्चित रूप से उसके साथ कोई न कोई सद्प्रयोजन जुड़ा होता है l मनुष्य को यह समझना चाहिए कि यह विशेष अनुदान उसे किसी समाजोपयोगी कार्य के लिए ही मिला l मनुष्य को जागरूक रहकर यह देखन चाहिए कि उसका लाभ गलत व्यक्ति तो नहीं उठा रहे l नहीं तो यह अच्छाइयाँ भी राजा जसवंतसिंह के पराक्रम की तरह निरर्थक चली जाएँगी l "
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