समय के साथ विभिन्न क्षेत्रों में परिवर्तन होते रहते हैं लेकिन कुछ क्षेत्र ऐसे हैं कि जब तक मनुष्य के विचार परिष्कृत नहीं होंगे , उनमे सुधार की संभावना बहुत कम रहेगी जैसे महिलाओं पर अत्याचार , घरेलु हिंसा , कार्य स्थल पर महिलाओं की अनेक समस्या l इसमें सुधार के लिए वातावरण को सकारात्मक बनाने की जरुरत है l कहते हैं सुनने और देखने का मानव मस्तिष्क पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है जैसे रामायण पाठ लोग बहुत भाव विभोर होकर सुनते हैं , लेकिन अपनी - अपनी मानसिकता के अनुसार उससे सीखते हैं जैसे सीताजी की अग्नि परीक्षा , उनकी गर्भावस्था में लक्ष्मण जी उन्हें आश्रम छोड़ने गए --- ये ऐसे मार्मिक प्रसंग हैं कि सुनने वालों की आँख में आंसू आ जाते हैं l बहुसंख्यक लोग उससे यही सीखते हैं कि नारी के साथ ऐसा ही होना चाहिए l घर हो या बाहर पुरुष नारी के प्रति कठोर व्यवहार करते हैं l यदि इन्ही प्रसंगों की व्याख्या वैज्ञानिक ढंग से की जाये तो लोगों के विचारों में , उनकी नारी के प्रति सोच में परिवर्तन होगा जैसे ----- इस बात को विज्ञानं भी प्रमाणित करता है कि किसी के दाह - संस्कार में जाने पर , या किसी घर में मृत्यु हुई है उस दिन और उसके आगे भी कम से कम दो तीन दिन तक उसके घर जाने के बाद जब वापस लौटते हैं तो शुद्धता की दृष्टि से स्नान आदि अनिवार्य है l तब फिर सीताजी तो उस लंका से वापस आईं थीं जहाँ रावण और उसके एक लाख पूत और सवा लाख नाती मृत्यु को प्राप्त हुए , आसुरी प्रवृति वाले असंख्य राक्षस मारे गए तो वहां का वातावरण कितना बोझिल और विषाक्त होगा इसकी कल्पना की जा सकती है l इसलिए बड़े स्तर पर हवन किया गया ताकि उसकी अग्नि से मिलने वाली ऊर्जा से और धुएं से सारे विषाणु , वायरस नष्ट हो जाएँ l कितने युग पहले रामायण लिखी गई और उसमे आज के समय के पर्यावरण प्रदूषण को दूर करने का उपाय बताया गया कि कैसे हवन कर के हम विषाक्तता को समाप्त कर पर्यावरण को शुद्ध कर सकते हैं l भगवान राम एकपत्नी व्रत थे , उनके हृदय में सीताजी के प्रति बहुत प्रेम था और समस्त नारी जाति के लिए श्रद्धा का भाव था वे कभी सीताजी का त्याग नहीं कर सकते थे l लेकिन नारी समाज का सृजन करती है l शासन प्रबंध में अच्छे - बुरे हर तरह के प्रसंग आते हैं , गर्भ में पलने वाले बच्चे को उनके दुष्प्रभाव से बचाने के लिए ही सीताजी को आश्रम में भेजा ताकि ऋषि के सत्संग में और प्राकृतिक वातावरण में स्वस्थ , श्रेष्ठ गुण संपन्न संतान हो जो कुल का नाम रोशन करे l विज्ञानं भी इस बात को प्रमाणित करता है कि गर्भ में पलने वाले शिशु पर माँ के विचारों और वातावरण का प्रभाव पड़ता है l इसलिए सीताजी का वनगमन कोई मार्मिक प्रसंग नहीं , बल्कि श्रेष्ठ संतति कैसे हो इसका संदेश है l वर्तमान में भी गर्भकाल में ही शिशु के प्रशिक्षण के लिए मन्त्र , साहित्य आदि उपलब्ध है जो जानकार हैं उसका लाभ उठाते हैं l
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