पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- " धैर्य , धर्म और साहस दिव्य गुण हैं जो मनुष्य को ईश्वर विश्वास से ओत -प्रोत करते हैं l जीवन के कठिनतम समय में , सारी विपरीतताओं में भी इन गुणों का अपने जीवन में अवश्य पालन करना चाहिए l आचार्य श्री लिखते हैं --- ' धैर्य का तात्पर्य है --- अनगिनत कष्टों , पीड़ा व मान - अपमान को शांत भाव से सहना l इनसे विचलित नहीं होना और इनके प्रति प्रतिक्रिया न देना l धैर्य से आत्मबल बढ़ता है l धैर्य सहना कायरता नहीं है l धैर्यवान वही हो सकता है , जो साहसी एवं वीर होता है l सच्चा साहस धैर्य से ही जन्म लेता है l मन को किसी भी स्थिति में हीन एवं क्षीण मत होने दो l वायु और अंतरिक्ष कभी किसी से नहीं डरते l " कष्ट , अपमान , पीड़ा सहना सामान्य बात नहीं है लेकिन जो धैर्य से सब सहन करता है , प्रतिक्रिया नहीं करता वही सच्चा साहसी है l एक सत्य घटना है ------ अमेरिका का एक प्रसिद्द मुक्केबाज था , जो विश्व चैंपियन भी बना l एक बार वह एक रेस्टोरेंट में भोजन करने गया l वहां कुछ युवक भी बैठे थे , जो शराब के नशे में उस मुक्केबाज को उलटा - सीधा बोलने लगे , परन्तु वह मुक्केबाज उनकी बातों को चुपचाप सहन कर शांत भाव से वहां से वापस लौटने लगा l मुक्केबाज के साथ आये उसके मित्र बोले --- " अरे , इनसे डरकर वापस लौटने की क्या आवश्यकता है ? इनमें से कोई ऐसा नहीं है , जो तुम्हारा एक घूंसा भी ढंग से सहन कर सके l " मुक्केबाज शांत भाव से बोला ---- " यही तो बात है l निर्बल पर बल दिखाना साहसी का कार्य नहीं है , सच्चा साहस तो शक्ति होते हुए भी विपरीतताओं को सहन कर जाने में है l "
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