आज संसार में लोगों के सामने इतनी समस्याएं हैं , तनाव है , सुख -शांति नहीं है , इसके मूल में प्रमुख कारण यही है कि जीवन जीने की कला का ज्ञान नहीं है l यह ज्ञान किसी स्कूल , कॉलेज या किसी संस्था में अध्ययन करने से नहीं आता l इसके लिए श्रेष्ठ और प्रामाणिक ग्रंथों के स्वाध्याय की जरुरत है l श्रीमद्भगवद्गीता , रामायण , महाभारत और पुराणों की कथाएं हमें जीवन जीने की कला सिखाती हैं l उनके अध्ययन - मनन से यह स्पष्ट हो जाता है कि संसार में अच्छा और बुरा दोनों है , ईश्वर ने हमें चयन की स्वतंत्रता दी है , हमारी वृत्ति हंस जैसी होनी चाहिए कि हम श्रेष्ठता को चुने और अपने समय व शक्ति का सदुपयोग करें l महाभारत का पात्र - दुर्योधन , सुयोधन था लेकिन गलत मार्ग का चयन करने , ईर्ष्या , द्वेष और षड्यंत्र में लिप्त रहने के कारण वह दुर्योधन कहलाया l ईर्ष्या , द्वेष तो उसमें इतना कूट - कूटकर भरा था कि जब पांडव उसके छल - कपट से जुए में हारकर वन में थे , तब भी उसने उनके विरुद्ध षड्यंत्र करने , उन्हें परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी l जैसी उसकी करनी थी , वैसा ही उसका परिणाम उसे मिला l दूसरी और पांडव थे , जिन्होंने अपने वनवास के वर्षों को विलाप कर नहीं बिताया और न ही परेशान हुए , यह समय उन्होंने स्वयं को हर दृष्टि से अधिक योग्य बनाने में बिताया , अर्जुन ने तपस्या से भगवान शिव से और देवराज इंद्र से अमोघ अस्त्र प्राप्त किये , अपने व्यक्तित्व को निखारा , स्वर्ग की सर्वश्रेष्ठ सुंदरी उर्वशी ने जब उनसे प्रणय निवेदन किया तो अर्जुन ने कहा -- जब आप नृत्य कर रही थीं तब मेरी दृष्टि आपके चरणों पर थी , आप मेरी माँ समान पूजनीय हो l उर्वशी ने चाहे क्रोधित होकर उन्हें श्राप दे दिया , लेकिन अर्जुन का मन , उनकी भावना श्रेष्ठ थी इसलिए वह श्राप भी उनके लिए वरदान बन गया l हमारे धर्म ग्रन्थ हमें संसार से भागना नहीं सिखाते , बल्कि यह शिक्षा देते हैं कि विपरीत परिस्थितियों का कैसे सकारात्मक तरीके से , धैर्य और विश्वास के साथ सामना किया जाये l
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