पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- ' पिछले दो हजार वर्ष ऐसे बीते हैं जिनमे अनीति ने , अनाचार ने अपनी सभी मर्यादाओं का उल्लंघन किया है l समर्थों ने असमर्थों को त्रास देने में कोई कसर नहीं छोड़ी l संसार में अनाचार , अत्याचार का अस्तित्व तो है , पर उसके साथ ही यह विधान भी है कि सताए जाने वाले बिना हार -जीत का विचार किए प्रतिकार के लिए तो तैयार रहें l दया , क्षमा अदि के नाम पर अनीति को बढ़ावा देना सदा से अवांछनीय माना जाता है l ' आचार्य श्री लिखते हैं ---- " जब अनाचारी अपनी दुष्टता से बाज नहीं आते हैं और पीड़ित व्यक्ति कायरता , भीरुता अपनाकर टकराने की नीति नहीं अपनाते तो अपनी व्यवस्था को लड़खड़ाते देख ईश्वर को भी क्रोध आता है l फिर जो मनुष्य नहीं कर पाता , उसे ईश्वर स्वयं करने के लिए तैयार होता है l " आचार्य श्री अपनी पुस्तक ' महाकाल और युग प्रत्यावर्तन -प्रक्रिया ' में लिखते हैं ----- " ' दक्ष ' को देवाधिदेव महादेव ने उसकी कुमार्गगामिता का दंड , उसका मानवीय सिर काटकर , बकरे का सिर लगाकर दिया था l दक्ष की चतुरता का वास्तविक रूप यही था l आज भी ' दक्षों ' ने --चतुरों ने यही कर रखा है l ----------- आज का मानवीय चातुर्य , जो सुविधा - साधनों के अहंकार में अपनी वास्तविक राह छोड़ बैठा है , वैसी ही दुर्गति का अधिकारी बनेगा , जैसा दक्ष का सारा परिवार बना था l " आचार्य श्री लिखते हैं --जब भी ऐसा समय आता है ईश्वर संसार की बागडोर अपने हाथ में ले लेते हैं और न्याय करते हैं l " मनुष्य ही अपनी गलतियों से ईश्वर को सुदर्शन चक्र चलाने और तृतीय नेत्र खोलने के लिए मजबूर कर देता है l घोर कलियुग में मनुष्य अपने एक चेहरे पर कई चेहरे लगा कर रखता है , उसका ' सत्य ' केवल ईश्वर ही जानते हैं , इसलिए ईश्वर ही न्याय करते हैं l
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