महानता का प्रथम लक्षण है --- विनम्रता ----- 1. पांडवों ने राजसूय यज्ञ किया l उसमें सर्वोत्तम पद चुन लेने के लिए कृष्ण को कहा गया l उन्होंने आगंतुकों के पैर धोकर सत्कार करने का काम अपने जिम्मे लिया l यह उनकी निरहंकारिता और विनम्रता की पराकाष्ठा ही थी l 2. डॉ . महेन्द्रनाथ सरकार कलकत्ता के प्रख्यात और संपन्न चिकित्सक थे l वे श्री रामकृष्ण परमहंस से मिलने गए l परमहंस जी बगीचे में टहल रहे थे l डॉ . महेन्द्रनाथ ने उन्हें माली समझकर कहा ---- " ऐ माली ! थोड़े से फूल तो लाकर दे l परमहंस जी को भेंट करने हैं l उन्होंने अच्छे -अच्छे फूल तोड़कर उन्हें दे दिए l थोड़ी देर में परमहंस जी सत्संग स्थान पर पहुंचे l डॉ . सरकार उनकी विनम्रता पर चकित रह गए l जिसको माली समझा गया था , वे ही परमहंस जी निकले l 3 . बीसवीं सदी के महान वैज्ञानिक आइन्स्टीन बेल्जियम की महारानी के निमंत्रण पर ब्रूसेल्स पहुंचे l महारानी ने अनेक बड़े अधिकारियों को उन्हें लेने के लिए स्टेशन भेजा , किन्तु सामान्य वेश -भूषा और सीधे से आइन्स्टीन को वे पहचान ही नहीं पाए और निराश लौट आए l आइन्स्टीन अपना बैग उठाये राजमहल पहुंचे और महारानी को अपने आने की सूचना भिजवाई l जब रानी ने अपने अधिकारियों की अज्ञानता के कारण हुई असुविधा के लिए खेद प्रकट किया तो वे हँसते हुए बोले --- " आप जरा सी बात के लिए दुःख न करें , मुझे पैदल चलना बहुत अच्छा लगता है l " जिस राजसी सम्मान को पाने के लिए लोग जीवन भर एड़ी -चोटी का पसीना एक करते रहते हैं , वह सम्मान महामानवों को सादगी की तुलना में इतना छोटा लगता है कि उसकी चर्चा भी चलना निरर्थक समझते हैं l
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