लघु कथाएं हमें शिक्षा तो देती हैं लेकिन लोभ , लालच , कामना , तृष्णा , महत्वाकांक्षा मनुष्य के मन पर इस तरह हावी हैं कि वह परिणाम सोचता ही नहीं है l फूट चाहे परिवार में हो , समाज या संस्था कहीं भी हो , यह हमेशा दुःखदायी होती है l इस फूट का फायदा 'तीसरा ' कब और कैसे उठा लेता है , जब तक यह समझ आता है , बहुत देर हो चुकी होती है l इसी सत्य को समझाने वाली कथा है ------ 1 . दो बिल्लियाँ मिलकर किसी घर से एक रोटी चुरा लाई l बँटवारे का फैसला नहीं हो रहा था l वो फैसला कराने बन्दर के पास पहुंची l बन्दर ने रोटी के दो टुकड़े किए l दोनों को तराजू के दो पलड़ों में रखा l जो भारी था उसमें से एक बड़ा टुकड़ा तोड़कर मुँह में रख लिया , अब दूसरा भारी हो गया तो उसमें से भी एक टुकड़ा तोड़कर मुँह में रख लिया l इसी प्रकार दो -तीन बार में सारी रोटी खा डाली l रोटियों का चूरा तराजू में पड़ा था l बिल्लियों ने कहा --- इसी को हमें दे दो l बन्दर ने कहा --- मेरी इतनी मेहनत का कुछ तो मेहनताना मिलना चाहिए l यह कहकर उसने बचे हुए चूरे को भी खा लिया l बिल्लियाँ इतना गंवाने के बाद समझीं कि अपना झगड़ा आपस में ही निपटा लेना चाहिए l
2 . वर्षा की फुहारों से धरती में से अनेक पौधे उग आए l दुर्भाग्य से सब पौधे आपस आपस में ही लड़ पड़े और उनमें से हर एक अपने को ज्यादा महत्वपूर्ण और उपयोगी बताने लगा l विवाद बढ़ता गया l छह माह ऐसे ही लड़ते -झगड़ते व्यतीत हो गए l ग्रीष्म ऋतु का आगमन हुआ तो उसके ताप से सारे पौधे सूख गए और जब बिछड़ने की घड़ी आई तो उन्हें अनुभव हुआ कि उन्होंने पूरी उम्र यों ही लड़ने -झगड़ने में व्यतीत कर दी l दुःखी पौधों ने संकल्प लिया कि यदि पुन: अवसर मिला तो प्रेम पूर्वक रहेंगे l तब से पौधे हँसते - खेलते सहयोग -सहकार से रहते हैं , मात्र इनसान ही इस छोटी सी बात को समझ नहीं पाता l
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