भगवान बुद्ध के जीवन का एक प्रसंग है ---- बुद्ध आस्वान राज्य के किसी नगर से गुजर रहे थे l वह स्थान उनके विरोधियों का गढ़ था l जब विरोधियों को बुद्ध के नगर में होने का पता चला , तो उन्हें अपमानित करने के लिए एक एक षड्यंत्र रचा l व्यक्ति के संस्कार जितने नीच होते हैं , वह उतनी ही घटिया स्तर की चाल चलता है l विरोधियों ने एक स्त्री के पेट में बहुत सा कपडा बांधकर उसे वहां भेजा , जहाँ बुद्ध थे l वह वहां पहुंची और जोर -जोर से चिल्लाकर कहने लगी ---- " देखो , यह पाप इसी महात्मा का है l यह ढोंग रचाए घूमता है और अब भी मुझे स्वीकार नहीं करता l " नगर में खलबली मच गई l उनके शिष्य आनंद बहुत चिंतित हो गए और पूछा --- " भगवन ! अब क्या होगा ? " बुद्ध हँसे और बोले --- " तुम चिंता मत करो , कपट देर तक नहीं चलता l चिरस्थायी फलने -फूलने की शक्ति केवल सत्य में है l " इसी बीच उस स्त्री की करधनी खिसक गई , पेट पर जो अलग से कपड़े बाँध रखे थे , वे जमीन पर आ गिरे l पोल खुल गई l स्त्री अपने कृत्य पर बहुत लज्जित हुई लोग उसे मारने दौड़े , पर बुद्ध ने यह कहकर उसे सुरक्षित लौटा दिया -- " जिसकी आत्मा मर गई हो , वह मरों से भी बढ़कर है , उसे शारीरिक दंड देने से क्या लाभ ! " इस प्रसंग से यह स्पष्ट होता है कि आसुरी प्रवृति के व्यक्ति , देवत्व को मिटाने के लिए ऐसी ही कुटिल चालें चलते हैं और उन्हें सफल बनाने के लिए किसी की गरीबी , किसी की मज़बूरी का फायदा उठाकर उन्हें अपना माध्यम बनाते हैं ताकि उनका असली रूप समाज के सामने न आ सके l लेकिन विजय हमेशा सत्य की होती है l
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