धर्म के नाम पर लड़ाई -झगड़े बहुत युगों से हो रहे हैं l हमारे ऋषि , आचार्य जी जानते थे कि जैसे जैसे कलियुग अपनी प्रौढ़ावस्था में आएगा , मनुष्य पर दुर्बुद्धि का प्रकोप बढ़ेगा इसलिए उन्होंने लघु कथाओं के माध्यम से धर्म के अर्थ को समझाया , जिससे सामान्य जन धर्म का सार समझ सके और अपने बहुमूल्य मानव जीवन को आपस में लड़ -झगड़कर बरबाद न करे ------- 1 . काशी के राजा ब्रह्मदत्त के शासन काल में धर्मपाल नामक एक सदाचारी और धर्मनिष्ठ ब्राह्मण ने अपने पुत्र को तक्षशिला अध्ययन के लिए भेजा l एक दिन किसी प्रसंगवश युवक ने अपने गुरु से कहा ---- " गुरुदेव ! हमारे कुल में सात पीढ़ियों से कोई युवावस्था में नहीं मरा l " आचार्य विद्यार्थी की बात का सत्य जानने के लिए विद्यालय को दूसरे की देखरेख में सौंपकर काशी रवाना हुए l रास्ते में उन्होंने बकरी की कुछ हड्डियाँ लीं और काशी में जाकर धर्मपाल ब्राह्मण से बोले --- " बहुत दुःख की बात है , तुम्हारा पुत्र असमय मृत्यु को प्राप्त हो गया l " यह सुनकर धर्मपाल हँसने लगा और बोला ---- " महाराज ! कोई और मरा होगा , हमारे कुल में सात पीढ़ियों से कोई युवा नहीं मरा l " आचार्य बोले --- " ये हड्डियाँ तुम्हारे पुत्र की हैं l " धर्मपाल ने उन्हें बिना देखे ही कहा --- " यह हड्डियाँ कुत्ते -बकरी की होंगी , ये हमारे परिवार से किसी की हो ही नहीं सकतीं l " अंत में आचार्य ने सत्य बताया और उनके कुल में सात पीढ़ियों से किसी युवा की मृत्यु न होने का रहस्य पूछा l धर्मपाल ने कहा --- " महाराज ! हम धर्म का आचरण करते हैं , सत्य बोलते हैं , जरुरतमंदों की सेवा करते हैं और दान देते हैं l इस प्रकार धर्म की रक्षा करने पर धर्म हमारी रक्षा करता है l "
2. जंगल में शिकारी के पीछे बाघ पड़ गया l शिकारी भागकर पेड़ पर चढ़ गया l उसी वृक्ष पर एक रीछ भी बैठा था l बाघ वृक्ष के नीचे बैठकर मनुष्य या रीछ के नीचे उतरने का इंतजार करने लगा l बहुत देर हो गई तो उसने रीछ से कहा --- " यह मनुष्य हम दोनों का शत्रु है , तू इसे धक्का मार , मैं इसे खाकर चला जाऊँगा और तेरा जीवन बच जायेगा l " रीछ ने कहा --- " नहीं ,यह यह मेरा धर्म नहीं है l " आधी रात को रीछ की आँख लग गई l अब बाघ ने शिकारी से कहा --- " वह रीछ को धक्का मार दे तो उसकी जान बच जाएगी l " शिकारी ने रीछ को धक्का मार दिया l किन्तु संयोग से गिरते -गिरते वृक्ष की एक डाल रीछ की पकड़ में आ गई l अब बाघ ने रीछ से कहा --- " देखा , जिस मनुष्य की तूने रक्षा की , वही तुझे मारने को तैयार हो गया l अब तू इसे धक्का मार l " रीछ ने कहा --- " वह भले ही अपने धर्म से विमुख हो जाये , परन्तु मैं ऐसा नहीं करूँगा l " परोपकारी व भावनाशील कभी किसी का अहित नहीं करते l दूसरे के अपकार के बदले , वे उपकार ही करते हैं , किसी का अहित करने की सोचते भी नहीं l
No comments:
Post a Comment