पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " मन , वचन और कर्म में एकरूपता को सत्य कहते हैं l यह सत्य भी समय और परिस्थिति को देखते हुए ही बोलने का निर्देश है l कठोर सत्य को न बोलने का निर्देश है l यदि अंधे को अँधा और लँगड़े को लंगड़ा कह दिया जाए , तो यह सत्य होते हुए भी अपमानजनक संबोधन है l इसे गाली समझा जाता है l अत: ऐसे वचनों का शास्त्रों में निषेध किया गया है l " एक कथा है ---- एक बार एक कसाई अपनी बूढ़ी गाय को ढूंढते हुए एक निर्जन स्थान से गुजरा l वहां एक ब्राह्मण वेद पाठ कर रहा था l कसाई ने उससे अपनी गाय के बारे में पूछा , तो उसने वस्तुस्थिति को भाँपते हुए उसका गोलमाल उत्तर दिया और कहा --- ' जिसने देखा वह बोलती नहीं और जो बोलती है , उसने देखा नहीं l इससे एक साथ दो प्रयोजन सधे l गाय की प्राण रक्षा हो गई जो सत्य बोलने से शायद नहीं हो पाती और दूसरा उसका मिथ्या न बोलने के संकल्प का भी निर्वाह हो गया l
No comments:
Post a Comment