1. दो बीज धरती को गोद में जा पड़े l मिटटी ने उन्हें ढँक दिया l दोनों रात में सुख की नींद सोए l प्रात:काल दोनों जगे तो एक के अंकुर फूट गए , वह ऊपर उठने लगा l यह देख छोटा बीज बोला --- " भैया ! वहां बहुत भय है , लोग तुझे रौंद डालेंगे , मार डालेंगे l " बीज सब सुनता रहा और चुपचाप ऊपर उठता रहा l धीरे -धीरे धरती की परत पार कर ऊपर निकल आया l सूर्य देवता ने धूप स्नान कराया और पवन देव ने पंखा डुलाया l वर्षा आई और शीतल जल पिला गई , किसान आया और बिस्तर लगाकर चला गया l बीज बढ़ता ही गया l लहलहाता , फूलता -फलता हुआ बीज एक दिन परिपक्व अवस्था तक जा पहुंचा l जब वह इस संसार से विदा हुआ तो अपने जैसे असंख्य बीज छोड़कर हँसता हुआ और आत्म संतोष अनुभव करता विदा हो गया l मिटटी के अन्दर दबा बीज यह देखकर पछता रहा था कि --भय और संकीर्णता के कारण मैं जहाँ था , वहीँ पड़ा रहा और मेरा भाई असंख्य गुनी समृद्धि पा गया l
2 . एक मंदिर बन रहा था l देश भर से आए शिल्पी पत्थरों पर छेनी से काम कर रहे थे l कारीगरों के मुखिया ने एक पत्थर को बेकार समझकर फेंक दिया l रास्ते में पड़ा वह पत्थर राहगीरों के पैर की ठोकरें खाता रहा और स्वयं को अभागा समझता रहा l एक दिन एक राज कलाकार उधर से गुजरा , उसने वह बेकार पत्थर उठाया और छेनी , हथोड़े की मदद से एक सुन्दर मूर्ति तैयार कर दी l सबने उसकी बहुत प्रशंसा की l कलाकार बोला --- " मैं तो औरों की तरह ही हूँ l जो पत्थर में से प्रकट किया , वह था तो पत्थर के अंदर ही l मैंने तो मात्र उसे पहचाना और उकारा है l " हम सबके भीतर भी महानतम , श्रेष्ठतम बनने की संभावनाएं हैं l कभी -कभी जीवन को गढ़ने वाला कोई कलाकार , गुरु , मार्गदर्शक मिल जाता है तो हम क्या से क्या बन जाते हैं l
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