16 March 2023

WISDOM ----

    महाभारत  में   कर्ण  का  चरित्र  हमें  यह  सिखाता  है  कि   अनीति  और  अधर्म  पर  चलने  वाले  व्यक्ति   का  कभी  कोई  एहसान  न  ले  l   एहसान  को  वो  एक  अच्छा  नाम  देता  है  और  बदले  में  पूरी    ऊर्जा   सोख  लेता  है  l  ऐसे  एहसान  चुकता  करने  की  कोई  सीमा  भी  नहीं  है ,  चाहे  प्राण  ही  क्यों  न  चले  जाएँ  l  दुर्योधन  अति  का  महत्वकांक्षी  था  ,  वह  पांडवों  को  सुई  की  नोक  बराबर  भूमि  भी  नहीं  देना  चाहता  l  दुर्योधन  को  विश्वास  था  कि  वह  चार  पांडवों  को  तो  पराजित  कर  सकता  है  , लेकिन  अर्जुन  को  पराजित  करना  असंभव  है  l  उसे  एक  ऐसे  वीर  की  तलाश  थी  जो  अर्जुन  को  पराजित  कर  सके  l  कर्ण  में  उसे  वह  संभावना  नजर  आई   इसलिए  उसने  कर्ण  को  अंग देश  का  राजा  बनाकर  उससे  मित्रता  की  l  भीष्म  और  द्रोणाचार्य  से  भी  ज्यादा  वह  कर्ण  पर  विश्वास  करता  था  l  कर्ण  को  भी  सूत पुत्र  होने  के  कारण  सब  तरफ  उपेक्षा  व  अपमान  मिला  था   इसलिए  उसने  दुर्योधन  द्वारा  दिए  गए  सम्मान  को  तुरंत  स्वीकार  कर  लिया   और  सारा  जीवन  दुर्योधन  की  हाँ  में  हाँ  मिलकर  इस  एहसान  का  बदला  चुकाता  रहा  l  कर्ण  को  अपनी  आंतरिक  शक्ति  का  ज्ञान  ही  नहीं  था  कि  वह  सूर्य  पुत्र  है  ,  कुंती  का   बेटा  और  पांडवों  का  बड़ा  भाई  है  l  जब   युद्ध  होना  निश्चित  हो  गया   तब  महारानी  कुंती  और  भगवान  श्रीकृष्ण  ने   कर्ण  को  यह  सत्य  बताया  कि  वह  सूर्य पुत्र  है  ,  अनीति  और  अधर्म  का  साथ  न  दे   l  लेकिन  तब  तक  बहुत  देर  हो  चुकी  थी   l  कर्ण  ने  मित्र  धर्म  को  निभाने  के  लिए   अपने  प्राण  दे  दिए   l  महर्षि  व्यास   दूरद्रष्टा  थे  , वे  जानते  थे  कि  कलियुग  में  अनीति  , अधर्म  अपने  चरम  पर  होगा ,   चारों  ओर  छल , कपट  और  षड्यंत्र  का  बोलबाला  होगा   इसलिए  कर्ण  के  चरित्र  के  माध्यम  से  उन्होंने  संसार  को  शिक्षा  दी  कि   कोई  व्यक्ति  हो  या  कोई  देश  हो   उसे   बहुत  सोच -समझ  कर  ही  किसी  से  मित्रता  का  हाथ  बढ़ाना  चाहिए  l  यह  मित्रता  चाहे  पद  का  लालच  हो ,  ऋण  के  रूप  में  हो  या   किसी  भी  सहायता  के  रूप  में  हो  ,  यदि  इसे  देने  वाला  अत्याचारी  है , षड्यंत्रकारी  है  तो  वह  गुलाम  बनाने  में  कोई  कोर -कसर   नहीं  छोड़ेगा  l  कलियुग  में   नैतिकता  की  बहुत  कमी  है  , मनुष्य  संवेदनहीन  है   इसलिए  ये  महाकाव्य   हमें  जागरूक  करते  हैं , जीवन  जीना  सिखाते  हैं  l  

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