महाभारत में कर्ण का चरित्र हमें यह सिखाता है कि अनीति और अधर्म पर चलने वाले व्यक्ति का कभी कोई एहसान न ले l एहसान को वो एक अच्छा नाम देता है और बदले में पूरी ऊर्जा सोख लेता है l ऐसे एहसान चुकता करने की कोई सीमा भी नहीं है , चाहे प्राण ही क्यों न चले जाएँ l दुर्योधन अति का महत्वकांक्षी था , वह पांडवों को सुई की नोक बराबर भूमि भी नहीं देना चाहता l दुर्योधन को विश्वास था कि वह चार पांडवों को तो पराजित कर सकता है , लेकिन अर्जुन को पराजित करना असंभव है l उसे एक ऐसे वीर की तलाश थी जो अर्जुन को पराजित कर सके l कर्ण में उसे वह संभावना नजर आई इसलिए उसने कर्ण को अंग देश का राजा बनाकर उससे मित्रता की l भीष्म और द्रोणाचार्य से भी ज्यादा वह कर्ण पर विश्वास करता था l कर्ण को भी सूत पुत्र होने के कारण सब तरफ उपेक्षा व अपमान मिला था इसलिए उसने दुर्योधन द्वारा दिए गए सम्मान को तुरंत स्वीकार कर लिया और सारा जीवन दुर्योधन की हाँ में हाँ मिलकर इस एहसान का बदला चुकाता रहा l कर्ण को अपनी आंतरिक शक्ति का ज्ञान ही नहीं था कि वह सूर्य पुत्र है , कुंती का बेटा और पांडवों का बड़ा भाई है l जब युद्ध होना निश्चित हो गया तब महारानी कुंती और भगवान श्रीकृष्ण ने कर्ण को यह सत्य बताया कि वह सूर्य पुत्र है , अनीति और अधर्म का साथ न दे l लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी l कर्ण ने मित्र धर्म को निभाने के लिए अपने प्राण दे दिए l महर्षि व्यास दूरद्रष्टा थे , वे जानते थे कि कलियुग में अनीति , अधर्म अपने चरम पर होगा , चारों ओर छल , कपट और षड्यंत्र का बोलबाला होगा इसलिए कर्ण के चरित्र के माध्यम से उन्होंने संसार को शिक्षा दी कि कोई व्यक्ति हो या कोई देश हो उसे बहुत सोच -समझ कर ही किसी से मित्रता का हाथ बढ़ाना चाहिए l यह मित्रता चाहे पद का लालच हो , ऋण के रूप में हो या किसी भी सहायता के रूप में हो , यदि इसे देने वाला अत्याचारी है , षड्यंत्रकारी है तो वह गुलाम बनाने में कोई कोर -कसर नहीं छोड़ेगा l कलियुग में नैतिकता की बहुत कमी है , मनुष्य संवेदनहीन है इसलिए ये महाकाव्य हमें जागरूक करते हैं , जीवन जीना सिखाते हैं l
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