लघु कथा ---- बंदरों का एक दल आम के बाग़ में निवास करता था l बन्दर जब भी आम तोड़ने का प्रयास करते तो आम तो कम हाथ लगते , पर बाग़ के रखवालों के पत्थर ज्यादा झेलने पड़ते l तंग आकर बंदरों के सरदार ने एक दिन बंदरों की सभा बुलाई और उसमे घोषणा की कि ' आज से हम लोग अपना अलग बाग़ लगाएंगे और उसमें आम के पेड़ लगाएंगे l इससे रोज -रोज के इस झंझट से मुक्ति मिलेगी l बात बाकी बंदरों को जँच गई l सबने आम की एक -एक गुठली ली और जमीन में गड्ढा कर के बो डाली l बंदरों में प्रसन्नता की लहर व्याप्त हो गई कि अब शीघ्र ही हर बन्दर आम के एक पेड़ का स्वामी होगा l लेकिन कुछ ही घंटे गुजरे थे कि बंदरों ने जमीन खोदकर गुठलियाँ बाहर निकाल लीं , ताकि ये देख सकें कि गुठलियों से पेड़ निकला या नहीं l देखते ही देखते सारा बाग़ उजड़ गया l दूर से यह द्रश्य देखकर संत ने अपने शिष्यों से कहा ----- 'कर्मों का इच्छानुसार फल प्राप्त करना हो तो प्रयत्न के अतिरिक्त धैर्य की भी आवश्यकता होती है l अधीर मनुष्यों का हाल भी इन मूर्ख वानरों के समान ही होता है l हर विकास के लिए एक समय विशेष अनिवार्य है l '
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