पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- " जाति -पाँति , ऊँच -नीच के भेदभाव को भुलाकर यदि सभी लोग पिछड़े रुग्ण व्यक्तियों की सच्ची सेवा में लग सकें तो इस धरती पर स्वर्ग जैसा वातावरण उत्पन्न कर सकना संभव है l जो शांति किसी योग साधना और सांसारिक वैभव से नहीं मिलती , वह निष्काम कर्मयोग से मिल जाती है l ईश्वर को अपनी आराधना कराने की तुलना में अपनी रचना की आराधना अधिक प्रिय है l " वर्तमान समय में संसार में जो इतनी अशांति है उसका एक कारण यह भी है कि आज लोकसेवक तो बहुत है लेकिन सेवा के नाम पर दिखावा , प्रदर्शन , प्रचार -प्रसार कर अपना स्वार्थ सिद्ध करना अधिक है l इसी सत्य को स्पष्ट करने वाली एक कथा है ---- एक समाजसेवी ने एक स्कूल खोला l वे बच्चों को रोज शिक्षा देते थे कि कोई दया का कार्य प्रतिदिन अवश्य करना चाहिए l एक दिन उन्होंने बच्चों से पूछा की तुमने क्या दयालुता का काम किया l तीन लड़कों ने हाथ उठाया और कहा हमने एक वृद्ध जो बहुत ही कमजोर था उसको सड़क पार कराने में मदद की l शिक्षक ने कहा ---क्या तुम तीनों ने एक ही वृद्ध को सड़क पार कराने में मदद की ? बच्चे बहुत भोले होते हैं , उन्होंने कहा ---- ' वृद्ध को सड़क पार जाना तो नहीं था , लेकिन हमें दया धर्म का पालन तो करना था इसलिए हम तीनो उससे चिपट गए और उसका हाथ पकड़कर घसीटते ले गए और सड़क पार करा के ही माने l ' शिक्षक ने अपना माथा पीट लिया , उसे बहुत दुःख हुआ लेकिन यह सोचकर मन शांत कर लिया कि दुनिया में लोकसेवा के नाम पर यही विडंबना तो चल रही है , बच्चे गुनहगार नहीं हैं l
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