लघु कथा ----1 . 'संसार की शोभा '---- ऋषि लाओत्से अपने प्रिय शिष्य योत्जी के साथ किसी यात्रा पर जा रहे थे l वे उस नगर के पास से गुजरे जहाँ के राजा को कुछ दिन पूर्व युद्ध में मार दिया गया था l राज महल जो कभी हास -विलास का केंद्र था , आज भूत -प्रेतों का वास बना हुआ था l खंडहर देखकर लाओत्से ने कहा ---" कितना भयंकर लगता है यह स्थान ! आदमी की गति न होने से स्थान नीरव और उदास लगते हैं l पता नहीं उस दिन धरती की स्थिति क्या होगी , जिस दिन पृथ्वी से मानव का अस्तित्व उठ जायेगा l " शिष्य योत्जी ने प्रश्न किया --- " क्या यह संभव है कि पृथ्वी जनशून्य हो जाएगी ? " लाओत्से ने कहा ---- " हाँ वत्स ! यह संभव है l लाखों , करोड़ों आदमी भले ही न मरें , पर जिस दिन धरती से उन आदमियों का अंत हो जाएगा , जिनके आधार पर मनुष्यता और धरती की प्रतिष्ठा है , उस दिन धरती वीरान हो जाएगी l प्राणवान पुरुषों के न रहने से धरती की शोभा जाती रहती है l संसार की गति उसमें बसने वाले साधारण आदमियों से नहीं है , बल्कि उस आदमी के कारण है , जिसकी स्फूर्ति से अनेक आदमियों के जीवन सही दिशा में चलते हैं l उनका न रहना और संसार का प्रेतवास बनना एक समान है l
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