इस संसार में आदिकाल से ही देवताओं और असुरों में , अंधकार और प्रकाश में संघर्ष रहा है l कलियुग में यह स्थिति और भयावह हो गई है l युद्ध , दंगे -फसाद , आतंक , जाति और धर्म के नाम पर झगड़े , प्राकृतिक आपदाएं इस धरती पर बहुत बढ़ गई हैं l समस्या यह है कि ऐसी नकारात्मक परिस्थितियों में हम कैसे शांति और तनाव रहित जीवन जिएं ? नकारात्मकता की बार -बार चर्चा करना व्यर्थ है l संसार में कुछ लोगों का जन्म होता ही इसलिए है कि वे नकारात्मक शक्तियों के साथ काम करते हैं , स्वयं अशांत रहते हैं और संसार में अशांति फैलाते हैं l इनका निपटारा तो भगवान ही कर सकते हैं l हमारे आचार्य ने , ऋषियों ने सुख -शांति से जीने का सबसे सरल एक उपाय बताया है वह है ---- निष्काम कर्म और नि:स्वार्थ प्रेम l श्रीमद् भगवद्गीता में भी यही कहा गया है कि निष्काम कर्म से मन निर्मल होता है l मन यदि निर्मल है , शांत है तो बाहर का शोर हमें नहीं सताता l निष्काम कर्म को यदि हम अपनी दिनचर्या में सम्मिलित कर लें तो सत्कर्मों की यह पूंजी हर मुसीबत से हमारी रक्षा करती है l नि:स्वार्थ प्रेम यदि हमें सीखना है तो भगवान श्रीकृष्ण की यशोदा मैया से सीखें l पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- 'त्याग एवं बलिदान ही प्रेम के पर्याय हैं l प्रेम वहीँ ठहरता है जहाँ स्वयं को मिटा देने का जज्बा पैदा होता है l ' जब भगवान श्रीकृष्ण को गोकुल छोड़कर मथुरा के लिए प्रस्थान करना था , उस समय मैया यशोदा का रो -रोकर बुरा हाल था , आँखें रोकर लाल हो गईं थीं l वे मैया से अंतिम विदाई लेने गए और कहा --- " माते ! मैं फिर लौटकर तुम्हारे पास आऊंगा , मुझे फिर से माखन -मिसरी अपने हाथों से खिलाना और जब तक मैं तेरे पास नहीं पहुँच जाऊँगा , अपने प्रिय माखन -मिसरी को हाथ तक नहीं लगाऊंगा l " अपने बाल्यकाल के चौदह वर्ष यशोदा मैया के सघन वात्सल्य में रहकर जब कृष्ण माता देवकी के पास पहुंचे तो इतने वर्षों बाद पुत्र को पाकर देवकी बावली सी हो रहीं थीं l उन्होंने सुन रखा था कि कृष्ण को माखन -मिसरी बहुत पसंद है , उन्होंने माखन -मिसरी से भरा स्वर्ण थाल कृष्ण के सामने रखा , तब कृष्ण ने माथा झुका लिया उनकी आँखों से दो बूंद आँसू टपक गए l देवकी ने कहा ---" पुत्र ! मुझसे क्या अपराध हुआ जो तुम इसे खाने के बदले रो रहे हो l " तब कृष्ण जी ने उनको यशोदा मैया को दिए गए वचन की बात कही l जब भगवान श्री कृष्ण के महाप्रयाण की सूचना देने अर्जुन माता देवकी के पास पहुंचे तब उन्हें यह दु:खद सूचना तो नहीं कह सके , हाँ उस समय देवकी ने यह माखन -मिसरी और यशोदा मैया को उनके दिए वचन की बात कही l देवकी ने कहा --- " अर्जुन ! मेरे मन में यशोदा के प्रति ईर्ष्या का भाव पनप गया था और कृष्ण के प्रति अधिकार का भाव आ गया था l अधिकार के इस भाव में अहंकार की गंध आती है और जहाँ अहंकार होगा , वहां प्रेम नहीं स्वार्थ पनपेगा l इसलिए माखन मिसरी में मेरा प्रेम नहीं , स्वार्थ टपक रहा था l वे कहती हैं ---'यशोदा का प्रेम त्याग से प्रकट हुआ था l इस प्रेम के कारण यशोदा का मातृत्व मेरे से बहुत ऊँचा था l इसी प्रेम के कारण जगत यशोदा को कृष्ण की मैया के रूप में जानता है l
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