यह मानव जाति का दुर्भाग्य है कि अब लोगों को युद्ध , हिंसा , दंगे , फसाद , अपहरण ------ आदि के बीच भय और तनाव के साथ जीने की आदत बन गई है l इसका कारण स्पष्ट है --अब मनुष्य के लिए उसका स्वार्थ सर्वोपरि है l परिवार , समाज , संस्थाएं , राष्ट्र और सम्पूर्ण संसार में मनुष्य की मन:स्थिति कुछ ऐसी हो गई है कि वह अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए उनकी खुशामद करता है जो सशक्त हैं , दबंग है , चाहे उनके कृत्यों से समाज की कितनी भी हानि क्यों न होती हो l स्थिति इतनी विकट है कि असुरता का साथ सब देते हैं क्योंकि उनसे तात्कालिक स्वार्थ की पूर्ति होती है और सत्य अकेला रह जाता है , यहाँ तक कि सत्य और ईमान की राह पर चलने वालों का लोग बायकाट कर देते हैं l इसका परिणाम यही होगा जो आज हम संसार में देख रहे हैं l एक कथा है ---- राजा कृतवीर्य के पुत्र सहस्त्रार्जुन बहुत वीर और सत्य के पथ पर अडिग रहने वाले महान तपस्वी भी थे l सम्पूर्ण पृथ्वी पर उनकी ख्याति थी l उनसे रावण को बहुत ईर्ष्या होती थी l रावण को बहुत अहंकार था , उसने सहस्त्रार्जुन पर आक्रमण किया कि उसके विशाल साम्राज्य पर अधिकार कर ले l युद्ध में रावण बुरी तरह पराजित हुआ और उसे बंदी बना लिया गया l सहस्त्रार्जुन ने उसे बंदीगृह में सम्मान से रखा , यह सम्मान रावण के अहंकार को चुभता था l स्वयं महर्षि पुलस्त्य रावण को बंदीगृह से मुक्त कराने गए l सहस्त्रार्जुन ने रावण को महर्षि पुलस्त्य के बराबर राजदरबार में स्थान दिया और रावण से कहा ----- " रावण ! मैं तुम्हारी विद्वता का कायल हूँ परन्तु तुम्हारे नीच कर्म पर मुझे दया आती है l रावण ! ध्यान रखना दुराचारी चाहे कितना बलवान , शक्तिवान क्यों न हो , एक दिन उसका दर्दनाक अंत होना सुनिश्चित है l पुण्य के क्षीण हो जाने पर सारा दंभ गुब्बारे की हवा की तरह निकल जाता है और बच जाता है शक्ति के बल पर किया गया घोर पाप l रावण ! तुम यह सब किसके लिए कर रहे हो ? यहाँ कोई अजेय नहीं है , काल किसी को क्षमा नहीं करता l मैं तुम्हे मुक्त नहीं कर रहा , मैं तुम्हे काल के हवाले कर रहा हूँ l मर्यादा और सत्य की कोई अवतारी सत्ता तुम्हारा विनाश करेगी l ध्यान रखना , शक्ति नहीं , सत्य ही विजित होता है l
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