काम , क्रोध , लोभ , मोह मन की ऐसी कमजोरियां हैं जिनसे मनुष्य तो क्या ऋषि , मुनि , देवता कोई नहीं बचे l जो इन पर विजय पाने का अहंकार करते हैं वे ईश्वर द्वारा ली जाने वाली परीक्षाओं में असफल हो जाते हैं , अहंकार व्यर्थ है l इन पर विजय पाना भी ईश्वरीय कृपा से ही संभव है l पुराण की एक कथा है -------- वेदव्यास के शिष्य थे जैमिनी l जैमिनी को अपनी तप साधना पर और वेदांत के ज्ञान पर अहंकार था l मैं ही ब्रह्म हूँ , उस पर तर्क करते l उन्हें अहंकार हो गया कि उन्होंने मन की इन कमजोरियों को जीत लिया है l गुरु ने अपने शिष्य को सही राह पर लाना ठीक समझा जिससे यह अहंकार का भूत उतर जाये l जैमिनी जंगल में कुटिया बनाकर रहते थे l एक अँधेरी रत , तेज आँधी आई , वर्षा हो रही थी l जैमिनी कुछ लिख रहे थे , अचानक एक सुन्दर युवती आई और बोली --- " आप महापुरुष है , यहाँ डर कैसा l आज्ञा हो तो कुटिया में शरण ले लें l " जैमिनी के अहं को पोषण मिला , बोले -- हाँ , विश्राम कर लो , दरवाजा अन्दर से बंद कर लो l " कुछ समय बीता , युवती की उपस्थिति से मन कुछ विचलित हुआ , दरवाजा खटखटा कर उसका हाल पूछा तो अन्दर से आवाज आई ---हम ठीक हैं l लेकिन मन कुछ ऐसा बैचैन हुआ कि फूस की छत का खपरैल हटाकर अन्दर कूदे तो अन्दर देखा महर्षि वेदव्यास आसन पर बैठे मुस्करा रहे हैं l जैमिनी बहुत शर्मिंदा हुए और गुरु के चरणों में गिर गए l गुरु ने समझाया ---- ' देह रहते आसक्ति का त्याग विरलों से ही संभव है l अहंकार नहीं करो l ' जैमिनी को सही शिक्षण मिला l
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