महाभारत के लिए कहा जाता है -- न भूतो न भविष्यति ' ऐसा युद्ध न कभी हुआ न होगा l वह युद्ध था अधर्म , अनीति और अत्याचार का अंत कर धर्म और शांति की स्थापना के लिए l युद्ध में दोनों ही पक्ष के योद्धा ने वीरता से युद्ध किया , युद्ध के नाम पर महिलाओं और बच्चों पर कोई अत्याचार नहीं हुआ l युद्ध में जो वीरगति प्राप्त हुए उन्हें स्वर्ग मिला l लेकिन इस कलियुगी दिमाग के युद्ध लोगों की पिशाचवृत्ति को जगा देते हैं l युद्ध और दंगों के नाम पर जो कृत्य करते हैं , ऐसे नर पिशाचों को देखकर तो सही का पिशाच भी शरमा जाए l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- क्रोध से मनुष्य की भावनाएं विकृत हो जाती हैं l वैर से वैर कभी शांत नहीं होता l अवैर से ही वैर शांत होता है l ' मैल से मैल साफ़ नहीं होता उसके लिए स्वच्छ जल की आवश्यकता होती है l एक कथा है जो इस सत्य को स्पष्ट करती है कि यदि विवेक नहीं जागता तो क्रोध और बदला लेने का दुर्गुण जन्म -जन्मान्तर तक चलता रहता है , किसी भी योनि में जन्म हो बदला शांत नहीं होता ------कौशाम्बी के राजा शूरसेन वन विहार को निकले l वन में एक पक्षी वृक्ष पर अत्यंत कर्कश स्वर में बोलने लगा , राजा ने इसे अपशकुन माना और उसे एक बाण मारा , पक्षी नीचे गिर गया l घायल पक्षी को तड़फता देख राजा का ह्रदय पश्चाताप करने लगा , अहंकार के कारण यह गलती हो गई l कुछ आगे बड़े तो एक मुनि ध्यान कर रहे थे उन्होंने राजा को दया -धर्म का उपदेश दिया l पक्षी को मारने का पश्चाताप और इस उपदेश का राजा पर इतना असर हुआ कि राज्य का परित्याग कर प्रव्रज्या ग्रहण कर ली l कौशाम्बी नरेश शूरसेन अब महामुनि कौशल्य बन गए l तीव्र तपस्या के कारण उन्हें ' तेजोलेश्या ' ( क्रोध से जिसे देखें वह जलकर राख बन जाये ) की प्राप्ति हो गई l वह पक्षी मरकर भील बना l एक बार महामुनि कौशल्य किसी वन से जा रहे थे , मार्ग में वह भील मिला l मुनि को देखते ही उसे पूर्व जन्म की याद आ गई और वह मुनि को लाठी से पीटने लगा l मुनि बहुत देर तक तो सहते रहे l वे सोच रहे थे कि मैंने तो इसका कोई नुकसान नहीं किया फिर भी यह मार रहा है , वे मुनि धर्म भूल गए और क्रोध में आकर तेजोलेश्या उस पर छोड़ दी l उसी क्षण वह भील जल गया और फिर उसी वन में सिंह के रूप में पैदा हुआ l महामुनि कौशल्य फिर उस वन से गुजरे तो उन्हें देखते ही सिंह उन पर टूट पड़ा l अपने बचाव के लिए मुनि ने उस पर तेजोलेश्या छोड़ दी , वह भी झुलसकर राख हो गया l उस पक्षी की आत्मा ने क्रमशः भील , सिंह , हाथी , सांड , और सर्प योनि में जन्म लिया और हर बार उसने पूर्व जन्म के वैर के कारण मुनि पर आक्रमण किया और मुनि ने उसे तेजोलेश्या से भस्म कर दिया l सर्प के बाद वह ब्राह्मण के घर जन्मा , पढ़ -लिख कर विद्वान् बन गया l मुनि उस गाँव में प्रवचन देने आए तो वह उनसे बहुत चिढ़ता था , उनको अपमानित करता , भरी सभा में निंदा करता , कटु वचन कहता l मुनि की सहनशीलता समाप्त हो गई , उन्होंने तेजोलेश्या छोड़कर उसे भी भरी सभा में भस्म कर दिया l मरते समय उसने ईश्वर को याद किया तो अगले जन्म में वह वाराणसी नगरी में ' महाबाहु नामक राजा बना l एक दिन राजा महाबाहु झरोखे से नगर का निरीक्षण कर रहे थे कि उन्होंने राजपथ से मुनि को जाते हुए देखा l मुनि को देखते ही उन्हें पूर्व जन्म की याद आ गई कि कैसे उसने पिछले छह जन्मों में बदला लेने के लिए मुनि पर आक्रमण किया और मुनि ने उसे तेजोलेश्य से भस्म कर दिया l राजा महाबाहु का विवेक जाग्रत हो गया , वे समझ गए कि यह सब उसके क्रोध और मुनि के ज्ञान के अहंकार के कारण हुआ l राजा ने मुनि को बुलवाया , उनकी वंदना की और सब बताया कि उसे इस तरह बदले की भावना रखने का पश्चाताप है l मुनि को भी अपने दुष्कृत्य का पश्चाताप हो रहा था l दोनों ने मिलकर संकल्प लेकर अपने ह्रदय को निर्मल बनाया और जन्म -जन्म की वैर परंपरा को समाप्त किया l
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