इस संसार में आसुरी शक्तियां भी हैं और देवत्व भी है l ईश्वर ने हमें चुनाव की स्वतंत्रता दी है , हम दोनों में से जिसे चाहे चुन लें l जैसी राह होगी वैसा ही परिणाम सामने आएगा l पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- " असुरता मायावी खेल खेलती है l असुर छल -बल का प्रयोग करते हैं l ये अपने जाल में उलझाने के लिए बड़ा ही मोहक एवं आकर्षक द्रश्य प्रस्तुत करते हैं l ये व्यक्ति की कमजोरियों को उभारते हैं l लोभ , मोह , काम, वासना आदि का द्रश्य दिखाकर ये अपने जाल में फंसा लेते हैं , फिर उसका तब तक उपयोग करते हैं , जब तक वह पूरी तरह निचुड़ न जाए l अंत में उसे मारकर फेंक देते हैं l यह असुरता का क्रियाकलाप है l इसके विपरीत देवता किसी का उपयोग करते हैं तो उसको उसके सतोगुणी रूप में वापस लौटाते हैं l देवत्व का पक्षधर कभी घाटे में नहीं रहता l सभी रूपों में उसे लाभ ही मिलता है l ' असुर अपने तप से बहुत धन -वैभव और शक्ति प्राप्त कर लेते हैं , जिसका उन्हें अहंकार होता है l l आचार्य श्री लिखते हैं ---- ' वक्त किसी का नहीं होता , परन्तु अहंकारी वक्त को थाम लेने का दंभ भरता है परन्तु जग जाहिर है कि रावण , कंस , जरासंध जैसे शक्तिशाली राक्षस भी उसे थाम नहीं पाए , काल चक्र के घूमते पहियों में पिस गए l किसी कालखंड में उदित पुण्यों के प्रभाव से अनीति और अत्याचार करने पर भी कुछ नहीं होता , इससे उन्हें ऐसा लगता है कि हमने काल पर नियंत्रण कर लिया परन्तु जब पुण्यों का प्रभाव चुक जाता है तब वक्त के थपेड़ों से वह भी बच नहीं पाता l अत: बुद्धिमानी इसी में है कि वक्त की सही पहचान करते हुए आसुरी शक्तियों के हाथ की कठपुतली न बनकर देवताओं का यंत्र बन जाना चाहिए l
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