पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " इस संसार में सज्जन को सज्जन और दुष्ट को दुष्ट सलाहकार मिल जाते हैं l यदि हमारा विवेक जागृत नहीं है तो दूसरों की सलाह हमें भटका भी सकती है l " पुराण में भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की कथा है ---- देवकी कंस की चचेरी बहन थीं , उनका विवाह वसुदेव से हुआ l l विदा के समय स्नेहवश कंस स्वयं रथ हाँक रहा था l उस समय भविष्यवाणी हुई कि देवकी के आठवें पुत्र द्वारा ही उसका वध होगा l यह सुनकर वह तलवार लेकर देवकी को मारने दौड़ा l तब वसुदेव ने उसे समझाया कि मृत्यु तो निश्चित है , तुम स्त्री और वो भी बहन की हत्या का कलंक क्यों लेते हो ? तुम्हे इसके पुत्र से खतरा है तो मैं इसके पुत्र होते ही तुम्हे सौंप दूंगा l जब देवकी के प्रथम पुत्र को लेकर वसुदेव कंस के पास गए तो कंस ने यह कहकर कि आपके आंठ्वे पुत्र से खतरा है , उस पुत्र को वापिस कर दिया l लेकिन जब उसे पता चला कि देवता उसे मारने की योजना बना रहे हैं तब उसने वासुदेव और देवकी को जेल में बंद कर दिया और उसके सभी पुत्रों को मारता गया l उसके पिता उग्रसेन ने विरोध किया तो उन्हें भी बंदी बना लिया l उसने अपने मंत्रियों को बुलाकर उनकी राय मांगी l श्रीमद् भागवत में शुकदेव जी परीक्षित से कहते हैं ---- एक तो कंस की बुद्धि स्वयं बिगड़ी हुई थी l फिर उसे मंत्री ऐसे मिले जो उससे बढ़कर दुष्ट थे l उन्होंने सलाह दी कि जब देवता हमें मारने का प्रयास कर रहे हैं तो हमें भी देवताओं को और देव शक्तियों को पोषण करने वाली सद्प्रव्रत्तियों को ही समाप्त कर देना चाहिए l कंस भी काल के फंदे में फँसा हुआ था , सबने मिलकर निर्णय लिया कि जहाँ भी अच्छे कार्य होते मिलेंगे , उन्हें नष्ट कर दिया जायेगा l कंस को मारने वाला कहाँ पैदा हुआ है यह पता न होने से उन राक्षसों ने सभी नवजात शिशुओं की हत्या करने की योजना बनाई और तरह -तरह के उत्पात करने शुरू कर दिए l कहते हैं जब मौत सिर पर नाचती है तब व्यक्ति की बुद्धि काम करना बंद कर देती है l नवजात शिशुओं का वध और श्रेष्ठ प्रवृत्तियों का अंत आदि अत्याचारों के कारण उनका पाप का घड़ा भर गया और एक -एक कर के सभी राक्षसों और कंस का वध हुआ l विवेक रहित व्यक्ति न अपना हित कर सकते हैं न दूसरों का l
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