संत अहमद से कुछ शिष्य बोले --- " महाराज ! हमें ईश्वर के किसी सच्चे भक्त के बारे में बताइए l " संत ने कहा ---- " तो सुनो , बहराम मेरा पड़ोसी था l मुझसे उसकी मित्रता हो गई l वह मालदार व्यापारी था l एक दिन राह में डाकुओं ने उसके कारवां को लूट लिया l यह सुनकर मैं उसे ढाढस बंधाने गया l जब मैं उसके घर पहुंचा , तो बहराम ने सोचा --- शायद मैं भी दूसरों की तरह भोजन के लिए आया हूँ l मैंने उससे कहा --- " भाई कष्ट मत करो l मैं भोजन की आशा से नहीं , बल्कि तुम्हारे इस भारी नुकसान में तुम्हे ढाढस बंधाने आया हूँ l " इस पर बहराम बोला --- " हाँ , यह सच है कि मुझे लाखों का नुकसान हुआ है l लेकिन ईश्वर की कृपा है कि उन्होंने मेरी शाश्वत संपत्ति को हाथ तक नहीं लगाया l वह संपत्ति है ---- ईश्वर में मेरी आस्था l वही तो जीवन की सच्ची संपत्ति है l " संत बोले ----- "सत्पुरुषों की श्रेष्ठता उनकी आस्था के स्तर के आधार पर ही पनपती है l जिन्हें ईश्वर में आस्था नहीं है वे न तो भक्त हो सकते हैं , और न ही सज्जन l "
No comments:
Post a Comment