एक व्यक्ति जिनका नाम था अभय कुमार उन्हें जंगल में एक नवजात शिशु मिला l वह शिशु को अपने साथ घर ले आए और उसका नाम रखा ' जीवक ' l जब जीवक बड़ा हुआ तो उसे पता चला कि अभय कुमार उसके असली पिता नहीं हैं किसी ने लोकाचार के भय से उसे जंगल में छोड़ दिया था l यह जानकर कि वह कुलहीन है , जीवक का ह्रदय ग्लानि से भर गया l अभय कुमार ने उसे समझाया कि व्यक्ति जन्म से नहीं कर्म से महान बनता है , इसके लिए ज्ञान बहुत जरुरी है l अत: उन्होंने जीवक को श्रेष्ठतम विद्या अर्जित करने के लिए तक्षशिला जाने के लिए प्रेरित किया l जीवक के तक्षशिला पहुँचने पर उससे प्रवेश के समय कुल , गोत्र संबंधित प्रश्न पूछे तो उन्होंने स्पष्ट रूप से सब सत्य बता दिया l जीवक की सत्यवादिता से प्रसन्न होकर उसे प्रवेश दे दिया गया l जीवक ने कठोर परिश्रम से तक्षशिला विश्वविद्यालय से आयुर्वेदाचार्य की उपाधि हासिल की l उनके आचार्य ने उन्हें मगध जाकर लोगों की सेवा करने का निर्देश दिया l जीवक ने कहा ---- " आचार्य ! मगध राज्य की राजधानी है l सभी कुलीन लोग वहां निवास करते हैं l क्या वे मुझ जैसे कुलहीन से अपनी चिकित्सा करवाना स्वीकार करेंगे ? मुझे आशंका है कि कहीं मुझे अपमान का सामना न करना पड़े l " जीवक के गुरु ने उत्तर दिया --- " वत्स ! आज से तुम्हारी योग्यता , क्षमता , प्रतिभा और ज्ञान ही तुम्हारे कुल और गोत्र हैं l तुम जहाँ भी जाओगे , अपने इन्हों गुणों के कारण सम्मान के अधिकारी बनोगे l कर्म से मनुष्य की पहचान होती है , कुल और गोत्र से नहीं l सेवा ही तुम्हारा धर्म है l " जीवक की आत्महीनता दूर हो गई और अपने सेवाभाव से वे महान चिकित्सक बने l
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