हिमालय की तराई में दो संन्यासी साथ -साथ रहते थे l उनमें एक वृद्ध और दूसरा नौजवान था l एक बार वे कई दिनों की तीर्थयात्रा के पश्चात् जब अपने ठिकाने पर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि हवा -आँधी ने उनकी कुटिया को तबाह कर दिया l यह देख युवा संन्यासी बड़बड़ाने लगा ----" जो छल -फरेब करते हैं , उनके मकान सुरक्षित हैं और हम जो दिन -रात प्रभु स्मरण करते हैं , हमारी कुटिया तहस -नहस हो गई l " वृद्ध संन्यासी बोला ---- " दुःखी मत हो , इसमें भी कुछ अच्छा ही होगा l " पर युवा संन्यासी वृद्ध की बात से सहमत नहीं हुआ , वह दुःखी होकर रात भर जागता रहा , जबकि वृद्ध सुबह सोकर उठा तो बोला --- " धन्यवाद ईश्वर आज खुले आसमान के नीचे बहुत अच्छी नींद आई , काश यह छप्पर पहले ही उड़ गया होता l " इस पर युवा संन्यासी बोला ---- " एक तो कुटिया नहीं रही , ऊपर से आप ईश्वर को धन्यवाद दे रहे हैं l " वृद्ध बोला ---- " तुम हताश हो गए और इसलिए रातभर जागते रहे और उदास रहे l मैं प्रसन्न था , इसलिए चैन की नींद सो गया l " इनसान को हर परिस्थिति में प्रसन्न रहना चाहिए l
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