नदी में बाढ़ आई ।लहरें तट की मर्यादा को तोड़ती हुईं चारों ओर फैलने लगीं ।प्रवाह में भारी प्रचंडता थी ।तटवर्ती वृक्ष उसकी लपेट में आकर धराशायी होने लगे ।किनारे पर शमी का एक विशाल वृक्ष मुद्दतों से अकड़ा खड़ा था ।वह सोचता था -"मेरी जड़ें गहरी हैं ,मैं परिपक्व भी हूँ और सुद्रढ़ भी ,इन लहरों की क्यों परवाह करूं ?"उसका सोचना चल ही रहा था कि लहरों ने जड़ के नीचे की मिट्टी काटनी शुरु कर दी ।हर लहर के साथ मिट्टी खिसकने लगी ।मजबूत तने से प्रवाह टकराया ।वृक्ष की निश्चिन्तता काम न आई ।देखते -देखते वह उखड़ गया ।देखने वालों ने आश्चर्य से देखा कि नदी तट का पुरातन शमी वृक्ष लहरों पर उतरता हुआ ,बहा चला जा रहा है ।पास ही बेंत का एक छोटा सा गुल्म खड़ा था ।उसने सोचा विपत्ति आने से पूर्व सुरक्षा का उपाय कर लेना चाहिये ।वह झुका और मिट्टी की सतह पर लेट गया ।गरजती हुई पानी की लहरें उसके ऊपर होकर गुजरती रहीं ।बाढ़ उतरी तो देखने वालों ने देखा कि बेंत का पौधा सुरक्षित है और खतरा टलते ही अपना मस्तक ऊँचा उठाने की तैयारी कर रहा है ।पूछने वालों ने पूछा -"विशाल शमी वृक्ष क्यों उखड़ गया और बेंत का छोटा पौधा बाढ़ से कैसे बचा रहा ?बताने वालों ने बताया -"अहंकारी ,अक्खड़ और अदूरदर्शी समय की गति को नहीं पहचानते और ढिठाई उन्हें ले बैठती है ।किन्तु जो नम्र हैं ,वे झुकते हैं ,टकराने से बचते हैं और अपनी सज्जनता का सुफल देर तक प्राप्त करते रहते हैं ।-
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