दूरदर्शिता वट वृक्ष की तरह है जो समयानुसार फल देता है एक राज्य का नियम था कि राजा पांच वर्ष के लिए नियुक्त होता था | इसके बाद उसे ऐसे निर्जन वन में छोड़ दिया जाता था जहां साधनों के अभाव में भूखा -प्यासा मर जाता था | बहुत से राजा इसी प्रकार मर चुके थे | एक चतुर एक बार राजगद्दी पर बैठा | उसने पता लगा लिया कि पांच वर्ष बाद उसे किस निर्जन क्षेत्र में भेजा जायेगा | उसने तुरंत यह व्यवस्था की कि उस वीरान में जलाशय बनवाये ,पेड़ -पौधे लगवाये ,प्रजा बसाई ,यातायात के साधन जुटाये | पांच वर्ष में वह निर्जन क्षेत्र इतना हरा -भरा हो गया कि वहां अनेक उद्द्योग -व्यवसाय शुरु हो गये | जब पांच वर्ष पूरे हो गये तब राजा वहां चला गया और पहले से अधिक सुख सुविधा से रहने लगा | यही है दूरदर्शिता | यदि हम वर्तमान को सत्कर्मों से सुखी बनाकर पुण्य -परमार्थ की सम्पदा जमा कर लें तो भविष्य में भी सुखी व संपन्न जीवन व्यतीत कर सकते हैं |
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